299

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

चढि चढि रथ बाहेर नगर लागी जुरन बरात।
होत सगुन सुन्दर सबहि जो जेहि कारज जात॥299॥

मूल

चढि चढि रथ बाहेर नगर लागी जुरन बरात।
होत सगुन सुन्दर सबहि जो जेहि कारज जात॥299॥

भावार्थ

रथों पर चढ-चढकर बारात नगर के बाहर जुटने लगी, जो जिस काम के लिए जाता है, सभी को सुन्दर शकुन होते हैं॥299॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

कलित करिबरन्हि परीं अँबारीं। कहि न जाहिं जेहि भाँति सँवारीं॥
चले मत्त गज घण्ट बिराजी। मनहुँ सुभग सावन घन राजी॥1॥

मूल

कलित करिबरन्हि परीं अँबारीं। कहि न जाहिं जेहि भाँति सँवारीं॥
चले मत्त गज घण्ट बिराजी। मनहुँ सुभग सावन घन राजी॥1॥

भावार्थ

श्रेष्ठ हाथियों पर सुन्दर अम्बारियाँ पडी हैं। वे जिस प्रकार सजाई गई थीं, सो कहा नहीं जा सकता। मतवाले हाथी घण्टों से सुशोभित होकर (घण्टे बजाते हुए) चले, मानो सावन के सुन्दर बादलों के समूह (गरते हुए) जा रहे हों॥

बाहन अपर अनेक बिधाना। सिबिका सुभग सुखासन जाना॥
तिन्ह चढि चले बिप्रबर बृन्दा। जनु तनु धरें सकल श्रुति छन्दा॥2॥

मूल

बाहन अपर अनेक बिधाना। सिबिका सुभग सुखासन जाना॥
तिन्ह चढि चले बिप्रबर बृन्दा। जनु तनु धरें सकल श्रुति छन्दा॥2॥

भावार्थ

सुन्दर पालकियाँ, सुख से बैठने योग्य तामजान (जो कुर्सीनुमा होते हैं) और रथ आदि और भी अनेकों प्रकार की सवारियाँ हैं। उन पर श्रेष्ठ ब्राह्मणों के समूह चढकर चले, मानो सब वेदों के छन्द ही शरीर धारण किए हुए हों॥2॥

मागध सूत बन्धि गुनगायक। चले जान चढि जो जेहि लायक॥
बेसर ऊँट बृषभ बहु जाती। चले बस्तु भरि अगनित भाँती॥3॥

मूल

मागध सूत बन्धि गुनगायक। चले जान चढि जो जेहि लायक॥
बेसर ऊँट बृषभ बहु जाती। चले बस्तु भरि अगनित भाँती॥3॥

भावार्थ

मागध, सूत, भाट और गुण गाने वाले सब, जो जिस योग्य थे, वैसी सवारी पर चढकर चले। बहुत जातियों के खच्चर, ऊँट और बैल असङ्ख्यों प्रकार की वस्तुएँ लाद-लादकर चले॥3॥

कोटिन्ह काँवरि चले कहारा। बिबिध बस्तु को बरनै पारा॥
चले सकल सेवक समुदाई। निज निज साजु समाजु बनाई॥4॥

मूल

कोटिन्ह काँवरि चले कहारा। बिबिध बस्तु को बरनै पारा॥
चले सकल सेवक समुदाई। निज निज साजु समाजु बनाई॥4॥

भावार्थ

कहार करोडों काँवरें लेकर चले। उनमें अनेकों प्रकार की इतनी वस्तुएँ थीं कि जिनका वर्णन कौन कर सकता है। सब सेवकों के समूह अपना-अपना साज-समाज बनाकर चले॥4॥