01 दोहा
छरे छबीले छयल सब सूर सुजान नबीन।
जुग पदचर असवार प्रति जे असिकला प्रबीन॥298॥
मूल
छरे छबीले छयल सब सूर सुजान नबीन।
जुग पदचर असवार प्रति जे असिकला प्रबीन॥298॥
भावार्थ
सभी चुने हुए छबीले छैल, शूरवीर, चतुर और नवयुवक हैं। प्रत्येक सवार के साथ दो पैदल सिपाही हैं, जो तलवार चलाने की कला में बडे निपुण हैं॥298॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
बाँधें बिरद बीर रन गाढे। निकसि भए पुर बाहेर ठाढे॥
फेरहिं चतुर तुरग गति नाना। हरषहिं सुनि सुनि पनव निसाना॥1॥
मूल
बाँधें बिरद बीर रन गाढे। निकसि भए पुर बाहेर ठाढे॥
फेरहिं चतुर तुरग गति नाना। हरषहिं सुनि सुनि पनव निसाना॥1॥
भावार्थ
शूरता का बाना धारण किए हुए रणधीर वीर सब निकलकर नगर के बाहर आ खडे हुए। वे चतुर अपने घोडों को तरह-तरह की चालों से फेर रहे हैं और भेरी तथा नगाडे की आवाज सुन-सुनकर प्रसन्न हो रहे हैं॥1॥
रथ सारथिन्ह बिचित्र बनाए। ध्वज पताक मनि भूषन लाए॥
चवँर चारु किङ्किनि धुनि करहीं। भानु जान सोभा अपहरहीं॥2॥
मूल
रथ सारथिन्ह बिचित्र बनाए। ध्वज पताक मनि भूषन लाए॥
चवँर चारु किङ्किनि धुनि करहीं। भानु जान सोभा अपहरहीं॥2॥
भावार्थ
सारथियों ने ध्वजा, पताका, मणि और आभूषणों को लगाकर रथों को बहुत विलक्षण बना दिया है। उनमें सुन्दर चँवर लगे हैं और घण्टियाँ सुन्दर शब्द कर रही हैं। वे रथ इतने सुन्दर हैं, मानो सूर्य के रथ की शोभा को छीने लेते हैं॥2॥
सावँकरन अगनित हय होते। ते तिन्ह रथन्ह सारथिन्ह जोते॥
सुन्दर सकल अलङ्कृत सोहे। जिन्हहि बिलोकत मुनि मन मोहे॥3॥
मूल
सावँकरन अगनित हय होते। ते तिन्ह रथन्ह सारथिन्ह जोते॥
सुन्दर सकल अलङ्कृत सोहे। जिन्हहि बिलोकत मुनि मन मोहे॥3॥
भावार्थ
अगणित श्यामवर्ण घोडे थे। उनको सारथियों ने उन रथों में जोत दिया है, जो सभी देखने में सुन्दर और गहनों से सजाए हुए सुशोभित हैं और जिन्हें देखकर मुनियों के मन भी मोहित हो जाते हैं॥3॥
जे जल चलहिं थलहि की नाईं। टाप न बूड बेग अधिकाईं॥
अस्त्र सस्त्र सबु साजु बनाई। रथी सारथिन्ह लिए बोलाई॥4॥
मूल
जे जल चलहिं थलहि की नाईं। टाप न बूड बेग अधिकाईं॥
अस्त्र सस्त्र सबु साजु बनाई। रथी सारथिन्ह लिए बोलाई॥4॥
भावार्थ
जो जल पर भी जमीन की तरह ही चलते हैं। वेग की अधिकता से उनकी टाप पानी में नहीं डूबती। अस्त्र-शस्त्र और सब साज सजाकर सारथियों ने रथियों को बुला लिया॥4॥