297

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

सोभा दसरथ भवन कइ को कबि बरनै पार।
जहाँ सकल सुर सीस मनि राम लीन्ह अवतार॥297॥

मूल

सोभा दसरथ भवन कइ को कबि बरनै पार।
जहाँ सकल सुर सीस मनि राम लीन्ह अवतार॥297॥

भावार्थ

दशरथ के महल की शोभा का वर्णन कौन कवि कर सकता है, जहाँ समस्त देवताओं के शिरोमणि रामचन्द्रजी ने अवतार लिया है॥297॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

भूप भरत पुनि लिए बोलाई। हय गयस्यन्दन साजहु जाई॥
चलहु बेगि रघुबीर बराता। सुनत पुलक पूरे दोउ भ्राता॥1॥

मूल

भूप भरत पुनि लिए बोलाई। हय गयस्यन्दन साजहु जाई॥
चलहु बेगि रघुबीर बराता। सुनत पुलक पूरे दोउ भ्राता॥1॥

भावार्थ

फिर राजा ने भरतजी को बुला लिया और कहा कि जाकर घोडे, हाथी और रथ सजाओ, जल्दी रामचन्द्रजी की बारात में चलो। यह सुनते ही दोनों भाई (भरतजी और शत्रुघ्नजी) आनन्दवश पुलक से भर गए॥1॥

भरत सकल साहनी बोलाए। आयसु दीन्ह मुदित उठि धाए॥
रचि रुचि जीन तुरग तिन्ह साजे। बरन बरन बर बाजि बिराजे॥2॥

मूल

भरत सकल साहनी बोलाए। आयसु दीन्ह मुदित उठि धाए॥
रचि रुचि जीन तुरग तिन्ह साजे। बरन बरन बर बाजि बिराजे॥2॥

भावार्थ

भरतजी ने सब साहनी (घुडसाल के अध्यक्ष) बुलाए और उन्हें (घोडों को सजाने की) आज्ञा दी, वे प्रसन्न होकर उठ दौडे। उन्होन्ने रुचि के साथ (यथायोग्य) जीनें कसकर घोडे सजाए। रङ्ग-रङ्ग के उत्तम घोडे शोभित हो गए॥2॥

सुभग सकल सुठि चञ्चल करनी। अय इव जरत धरत पग धरनी॥
नाना जाति न जाहिं बखाने। निदरि पवनु जनु चहत उडाने॥3॥

मूल

सुभग सकल सुठि चञ्चल करनी। अय इव जरत धरत पग धरनी॥
नाना जाति न जाहिं बखाने। निदरि पवनु जनु चहत उडाने॥3॥

भावार्थ

सब घोडे बडे ही सुन्दर और चञ्चल करनी (चाल) के हैं। वे धरती पर ऐसे पैर रखते हैं जैसे जलते हुए लोहे पर रखते हों। अनेकों जाति के घोडे हैं, जिनका वर्णन नहीं हो सकता। (ऐसी तेज चाल के हैं) मानो हवा का निरादर करके उडना चाहते हैं॥3॥

तिन्ह सब छयल भए असवारा। भरत सरिस बय राजकुमारा॥
सब सुन्दर सब भूषनधारी। कर सर चाप तून कटि भारी॥4॥

मूल

तिन्ह सब छयल भए असवारा। भरत सरिस बय राजकुमारा॥
सब सुन्दर सब भूषनधारी। कर सर चाप तून कटि भारी॥4॥

भावार्थ

उन सब घोडों पर भरतजी के समान अवस्था वाले सब छैल-छबीले राजकुमार सवार हुए। वे सभी सुन्दर हैं और सब आभूषण धारण किए हुए हैं। उनके हाथों में बाण और धनुष हैं तथा कमर में भारी तरकस बँधे हैं॥4॥