296

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

मङ्गलमय निज निज भवन लोगन्ह रचे बनाइ।
बीथीं सीञ्चीं चतुरसम चौकें चारु पुराइ॥296॥

मूल

मङ्गलमय निज निज भवन लोगन्ह रचे बनाइ।
बीथीं सीञ्चीं चतुरसम चौकें चारु पुराइ॥296॥

भावार्थ

लोगों ने अपने-अपने घरों को सजाकर मङ्गलमय बना लिया। गलियों को चतुर सम से सीञ्चा और (द्वारों पर) सुन्दर चौक पुराए। (चन्दन, केशर, कस्तूरी और कपूर से बने हुए एक सुगन्धित द्रव को चतुरसम कहते हैं)॥296॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

जहँ तहँ जूथ जूथ मिलि भामिनि। सजि नव सप्त सकल दुति दामिनि॥
बिधुबदनीं मृग सावक लोचनि। निज सरूप रति मानु बिमोचनि॥1॥

मूल

जहँ तहँ जूथ जूथ मिलि भामिनि। सजि नव सप्त सकल दुति दामिनि॥
बिधुबदनीं मृग सावक लोचनि। निज सरूप रति मानु बिमोचनि॥1॥

भावार्थ

बिजली की सी कान्ति वाली चन्द्रमुखी, हरिन के बच्चे के से नेत्र वाली और अपने सुन्दर रूप से कामदेव की स्त्री रति के अभिमान को छुडाने वाली सुहागिनी स्त्रियाँ सभी सोलहों श्रृङ्गार सजकर, जहाँ-तहाँ झुण्ड की झुण्ड मिलकर,॥1॥

गावहिं मङ्गल मञ्जुल बानीं। सुनि कल रव कलकण्ठि लजानीं॥
भूप भवन किमि जाइ बखाना। बिस्व बिमोहन रचेउ बिताना॥2॥

मूल

गावहिं मङ्गल मञ्जुल बानीं। सुनि कल रव कलकण्ठि लजानीं॥
भूप भवन किमि जाइ बखाना। बिस्व बिमोहन रचेउ बिताना॥2॥

भावार्थ

मनोहर वाणी से मङ्गल गीत गा रही हैं, जिनके सुन्दर स्वर को सुनकर कोयलें भी लजा जाती हैं। राजमहल का वर्णन कैसे किया जाए, जहाँ विश्व को विमोहित करने वाला मण्डप बनाया गया है॥2॥

मङ्गल द्रब्य मनोहर नाना। राजत बाजत बिपुल निसाना॥
कतहुँ बिरिद बन्दी उच्चरहीं। कतहुँ बेद धुनि भूसुर करहीं॥3॥

मूल

मङ्गल द्रब्य मनोहर नाना। राजत बाजत बिपुल निसाना॥
कतहुँ बिरिद बन्दी उच्चरहीं। कतहुँ बेद धुनि भूसुर करहीं॥3॥

भावार्थ

अनेकों प्रकार के मनोहर माङ्गलिक पदार्थ शोभित हो रहे हैं और बहुत से नगाडे बज रहे हैं। कहीं भाट विरुदावली (कुलकीर्ति) का उच्चारण कर रहे हैं और कहीं ब्राह्मण वेदध्वनि कर रहे हैं॥3॥

गावहिं सुन्दरि मङ्गल गीता। लै लै नामु रामु अरु सीता॥
बहुत उछाहु भवनु अति थोरा। मानहुँ उमगि चला चहु ओरा॥4॥

मूल

गावहिं सुन्दरि मङ्गल गीता। लै लै नामु रामु अरु सीता॥
बहुत उछाहु भवनु अति थोरा। मानहुँ उमगि चला चहु ओरा॥4॥

भावार्थ

सुन्दरी स्त्रियाँ श्री रामजी और श्री सीताजी का नाम ले-लेकर मङ्गलगीत गा रही हैं। उत्साह बहुत है और महल अत्यन्त ही छोटा है। इससे (उसमें न समाकर) मानो वह उत्साह (आनन्द) चारों ओर उमड चला है॥4॥