287

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

हरित मनिन्ह के पत्र फल पदुमराग के फूल।
रचना देखि बिचित्र अति मनु बिरञ्चि कर भूल॥287॥

मूल

हरित मनिन्ह के पत्र फल पदुमराग के फूल।
रचना देखि बिचित्र अति मनु बिरञ्चि कर भूल॥287॥

भावार्थ

हरी-हरी मणियों (पन्ने) के पत्ते और फल बनाए तथा पद्मराग मणियों (माणिक) के फूल बनाए। मण्डप की अत्यन्त विचित्र रचना देखकर ब्रह्मा का मन भी भूल गया॥287॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

बेनु हरित मनिमय सब कीन्हे। सरल सपरब परहिं नहिं चीन्हे॥
कनक कलित अहिबेलि बनाई। लखि नहिं परइ सपरन सुहाई॥1॥

मूल

बेनु हरित मनिमय सब कीन्हे। सरल सपरब परहिं नहिं चीन्हे॥
कनक कलित अहिबेलि बनाई। लखि नहिं परइ सपरन सुहाई॥1॥

भावार्थ

बाँस सब हरी-हरी मणियों (पन्ने) के सीधे और गाँठों से युक्त ऐसे बनाए जो पहचाने नहीं जाते थे (कि मणियों के हैं या साधारण)। सोने की सुन्दर नागबेली (पान की लता) बनाई, जो पत्तों सहित ऐसी भली मालूम होती थी कि पहचानी नहीं जाती थी॥1॥

तेहि के रचि पचि बन्ध बनाए। बिच बिच मुकुता दाम सुहाए॥
मानिक मरकत कुलिस पिरोजा। चीरि कोरि पचि रचे सरोजा॥2॥

मूल

तेहि के रचि पचि बन्ध बनाए। बिच बिच मुकुता दाम सुहाए॥
मानिक मरकत कुलिस पिरोजा। चीरि कोरि पचि रचे सरोजा॥2॥

भावार्थ

उसी नागबेली के रचकर और पच्चीकारी करके बन्धन (बाँधने की रस्सी) बनाए। बीच-बीच में मोतियों की सुन्दर झालरें हैं। माणिक, पन्ने, हीरे और िफरोजे, इन रत्नों को चीरकर, कोरकर और पच्चीकारी करके, इनके (लाल, हरे, सफेद और फिरोजी रङ्ग के) कमल बनाए॥2॥

किए भृङ्ग बहुरङ्ग बिहङ्गा। गुञ्जहिं कूजहिं पवन प्रसङ्गा॥
सुर प्रतिमा खम्भन गढि काढीं। मङ्गल द्रब्य लिएँ सब ठाढीं॥3॥

मूल

किए भृङ्ग बहुरङ्ग बिहङ्गा। गुञ्जहिं कूजहिं पवन प्रसङ्गा॥
सुर प्रतिमा खम्भन गढि काढीं। मङ्गल द्रब्य लिएँ सब ठाढीं॥3॥

भावार्थ

भौंरे और बहुत रङ्गों के पक्षी बनाए, जो हवा के सहारे गूँजते और कूजते थे। खम्भों पर देवताओं की मूर्तियाँ गढकर निकालीं, जो सब मङ्गल द्रव्य लिए खडी थीं॥3॥

चौकें भाँति अनेक पुराईं। सिन्धुर मनिमय सहज सुहाईं॥4॥

मूल

चौकें भाँति अनेक पुराईं। सिन्धुर मनिमय सहज सुहाईं॥4॥

भावार्थ

गजमुक्ताओं के सहज ही सुहावने अनेकों तरह के चौक पुराए॥4॥