286

01 दोहा

तदपि जाइ तुम्ह करहु अब जथा बंस ब्यवहारु।
बूझि बिप्र कुलबृद्ध गुर बेद बिदित आचारु॥286॥

मूल

तदपि जाइ तुम्ह करहु अब जथा बंस ब्यवहारु।
बूझि बिप्र कुलबृद्ध गुर बेद बिदित आचारु॥286॥

भावार्थ

तथापि तुम जाकर अपने कुल का जैसा व्यवहार हो, ब्राह्मणों, कुल के बूढों और गुरुओं से पूछकर और वेदों में वर्णित जैसा आचार हो वैसा करो॥286॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

दूत अवधपुर पठवहु जाई। आनहिं नृप दसरथहिं बोलाई॥
मुदित राउ कहि भलेहिं कृपाला। पठए दूत बोलि तेहि काला॥1॥

मूल

दूत अवधपुर पठवहु जाई। आनहिं नृप दसरथहिं बोलाई॥
मुदित राउ कहि भलेहिं कृपाला। पठए दूत बोलि तेहि काला॥1॥

भावार्थ

जाकर अयोध्या को दूत भेजो, जो राजा दशरथ को बुला लावें। राजा ने प्रसन्न होकर कहा- हे कृपालु! बहुत अच्छा! और उसी समय दूतों को बुलाकर भेज दिया॥1॥

बहुरि महाजन सकल बोलाए। आइ सबन्हि सादर सिर नाए॥
हाट बाट मन्दिर सुरबासा। नगरु सँवारहु चारिहुँ पासा॥2॥

मूल

बहुरि महाजन सकल बोलाए। आइ सबन्हि सादर सिर नाए॥
हाट बाट मन्दिर सुरबासा। नगरु सँवारहु चारिहुँ पासा॥2॥

भावार्थ

फिर सब महाजनों को बुलाया और सबने आकर राजा को आदरपूर्वक सिर नवाया। (राजा ने कहा-) बाजार, रास्ते, घर, देवालय और सारे नगर को चारों ओर से सजाओ॥2॥

हरषि चले निज निज गृह आए। पुनि परिचारक बोलि पठाए॥
रचहु बिचित्र बितान बनाई। सिर धरि बचन चले सचु पाई॥3॥

मूल

हरषि चले निज निज गृह आए। पुनि परिचारक बोलि पठाए॥
रचहु बिचित्र बितान बनाई। सिर धरि बचन चले सचु पाई॥3॥

भावार्थ

महाजन प्रसन्न होकर चले और अपने-अपने घर आए। फिर राजा ने नौकरों को बुला भेजा (और उन्हें आज्ञा दी कि) विचित्र मण्डप सजाकर तैयार करो। यह सुनकर वे सब राजा के वचन सिर पर धरकर और सुख पाकर चले॥3॥

पठए बोलि गुनी तिन्ह नाना। जे बितान बिधि कुसल सुजाना॥
बिधिहि बन्दि तिन्ह कीन्ह अरम्भा। बिरचे कनक कदलि के खम्भा॥4॥

मूल

पठए बोलि गुनी तिन्ह नाना। जे बितान बिधि कुसल सुजाना॥
बिधिहि बन्दि तिन्ह कीन्ह अरम्भा। बिरचे कनक कदलि के खम्भा॥4॥

भावार्थ

उन्होन्ने अनेक कारीगरों को बुला भेजा, जो मण्डप बनाने में कुशल और चतुर थे। उन्होन्ने ब्रह्मा की वन्दना करके कार्य आरम्भ किया और (पहले) सोने के केले के खम्भे बनाए॥4॥