261

01 सोरठा

विश्वास-प्रस्तुतिः

सङ्कर चापु जहाजु सागरु रघुबर बाहुबलु।
बूड सो सकल समाजु चढा जो प्रथमहिं मोह बस॥261॥

मूल

सङ्कर चापु जहाजु सागरु रघुबर बाहुबलु।
बूड सो सकल समाजु चढा जो प्रथमहिं मोह बस॥261॥

भावार्थ

शिवजी का धनुष जहाज है और श्री रामचन्द्रजी की भुजाओं का बल समुद्र है। (धनुष टूटने से) वह सारा समाज डूब गया, जो मोहवश पहले इस जहाज पर चढा था। (जिसका वर्णन ऊपर आया है।)॥261॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रभु दोउ चापखण्ड महि डारे। देखि लोग सब भए सुखारे॥
कौसिकरूप पयोनिधि पावन। प्रेम बारि अवगाहु सुहावन॥1॥

मूल

प्रभु दोउ चापखण्ड महि डारे। देखि लोग सब भए सुखारे॥
कौसिकरूप पयोनिधि पावन। प्रेम बारि अवगाहु सुहावन॥1॥

भावार्थ

प्रभु ने धनुष के दोनों टुकडे पृथ्वी पर डाल दिए। यह देखकर सब लोग सुखी हुए। विश्वामित्र रूपी पवित्र समुद्र में, जिसमें प्रेम रूपी सुन्दर अथाह जल भरा है,॥1॥

रामरूप राकेसु निहारी। बढत बीचि पुलकावलि भारी॥
बाजे नभ गहगहे निसाना। देवबधू नाचहिं करि गाना॥2॥

मूल

रामरूप राकेसु निहारी। बढत बीचि पुलकावलि भारी॥
बाजे नभ गहगहे निसाना। देवबधू नाचहिं करि गाना॥2॥

भावार्थ

राम रूपी पूर्णचन्द्र को देखकर पुलकावली रूपी भारी लहरें बढने लगीं। आकाश में बडे जोर से नगाडे बजने लगे और देवाङ्गनाएँ गान करके नाचने लगीं॥2॥

ब्रह्मादिक सुर सिद्ध मुनीसा। प्रभुहि प्रसंसहिं देहिं असीसा॥
बरिसहिं सुमन रङ्ग बहु माला। गावहिं किन्नर गीत रसाला॥3॥

मूल

ब्रह्मादिक सुर सिद्ध मुनीसा। प्रभुहि प्रसंसहिं देहिं असीसा॥
बरिसहिं सुमन रङ्ग बहु माला। गावहिं किन्नर गीत रसाला॥3॥

भावार्थ

ब्रह्मा आदि देवता, सिद्ध और मुनीश्वर लोग प्रभु की प्रशंसा कर रहे हैं और आशीर्वाद दे रहे हैं। वे रङ्ग-बिरङ्गे फूल और मालाएँ बरसा रहे हैं। किन्नर लोग रसीले गीत गा रहे हैं॥3॥

रही भुवन भरि जय जय बानी। धनुषभङ्ग धुनिजात न जानी॥
मुदित कहहिं जहँ तहँ नर नारी। भञ्जेउ राम सम्भुधनु भारी॥4॥

मूल

रही भुवन भरि जय जय बानी। धनुषभङ्ग धुनिजात न जानी॥
मुदित कहहिं जहँ तहँ नर नारी। भञ्जेउ राम सम्भुधनु भारी॥4॥

भावार्थ

सारे ब्रह्माण्ड में जय-जयकार की ध्वनि छा गई, जिसमें धनुष टूटने की ध्वनि जान ही नहीं पडती। जहाँ-तहाँ स्त्री-पुरुष प्रसन्न होकर कह रहे हैं कि श्री रामचन्द्रजी ने शिवजी के भारी धनुष को तोड डाला॥4॥