260

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

राम बिलोके लोग सब चित्र लिखे से देखि।
चितई सीय कृपायतन जानी बिकल बिसेषि॥260॥

मूल

राम बिलोके लोग सब चित्र लिखे से देखि।
चितई सीय कृपायतन जानी बिकल बिसेषि॥260॥

भावार्थ

श्री रामजी ने सब लोगों की ओर देखा और उन्हें चित्र में लिखे हुए से देखकर फिर कृपाधाम श्री रामजी ने सीताजी की ओर देखा और उन्हें विशेष व्याकुल जाना॥260॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

देखी बिपुल बिकल बैदेही। निमिष बिहात कलप सम तेही।
तृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा। मुएँ करइ का सुधा तडागा॥1॥

मूल

देखी बिपुल बिकल बैदेही। निमिष बिहात कलप सम तेही।
तृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा। मुएँ करइ का सुधा तडागा॥1॥

भावार्थ

उन्होन्ने जानकीजी को बहुत ही विकल देखा। उनका एक-एक क्षण कल्प के समान बीत रहा था। यदि प्यासा आदमी पानी के बिना शरीर छोड दे, तो उसके मर जाने पर अमृत का तालाब भी क्या करेगा?॥1॥

का बरषा सब कृषी सुखानें। समय चुकें पुनि का पछितानें॥
अस जियँ जानि जानकी देखी। प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी॥2॥

मूल

का बरषा सब कृषी सुखानें। समय चुकें पुनि का पछितानें॥
अस जियँ जानि जानकी देखी। प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी॥2॥

भावार्थ

सारी खेती के सूख जाने पर वर्षा किस काम की? समय बीत जाने पर फिर पछताने से क्या लाभ? जी में ऐसा समझकर श्री रामजी ने जानकीजी की ओर देखा और उनका विशेष प्रेम लखकर वे पुलकित हो गए॥2॥

गुरहि प्रनामु मनहिं मन कीन्हा। अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा॥
दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ। पुनि नभ धनु मण्डल सम भयऊ॥3॥

मूल

गुरहि प्रनामु मनहिं मन कीन्हा। अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा॥
दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ। पुनि नभ धनु मण्डल सम भयऊ॥3॥

भावार्थ

मन ही मन उन्होन्ने गुरु को प्रणाम किया और बडी फुर्ती से धनुष को उठा लिया। जब उसे (हाथ में) लिया, तब वह धनुष बिजली की तरह चमका और फिर आकाश में मण्डल जैसा (मण्डलाकार) हो गया॥3॥

लेत चढावत खैञ्चत गाढें। काहुँ न लखा देख सबु ठाढें॥
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा॥4॥

मूल

लेत चढावत खैञ्चत गाढें। काहुँ न लखा देख सबु ठाढें॥
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा। भरे भुवन धुनि घोर कठोरा॥4॥

भावार्थ

लेते, चढाते और जोर से खीञ्चते हुए किसी ने नहीं लखा (अर्थात ये तीनों काम इतनी फुर्ती से हुए कि धनुष को कब उठाया, कब चढाया और कब खीञ्चा, इसका किसी को पता नहीं लगा), सबने श्री रामजी को (धनुष खीञ्चे) खडे देखा। उसी क्षण श्री रामजी ने धनुष को बीच से तोड डाला। भयङ्कर कठोर ध्वनि से (सब) लोक भर गए॥4॥

03 छन्द

विश्वास-प्रस्तुतिः

भे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले।
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले॥
सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं।
कोदण्ड खण्डेउ राम तुलसी जयति बचन उचारहीं॥

मूल

भे भुवन घोर कठोर रव रबि बाजि तजि मारगु चले।
चिक्करहिं दिग्गज डोल महि अहि कोल कूरुम कलमले॥
सुर असुर मुनि कर कान दीन्हें सकल बिकल बिचारहीं।
कोदण्ड खण्डेउ राम तुलसी जयति बचन उचारहीं॥

भावार्थ

घोर, कठोर शब्द से (सब) लोक भर गए, सूर्य के घोडे मार्ग छोडकर चलने लगे।

दिग्गज चिग्घाडने लगे, धरती डोलने लगी, शेष, वाराह और कच्छप कलमला उठे। देवता, राक्षस और मुनि कानों पर हाथ रखकर सब व्याकुल होकर विचारने लगे। तुलसीदासजी कहते हैं (जब सब को निश्चय हो गया कि) श्री रामजी ने धनुष को तोड डाला, तब सब ‘श्री रामचन्द्र की जय’ बोलने लगे।