242

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

राजत राज समाज महुँ कोसलराज किसोर।
सुन्दर स्यामल गौर तन बिस्व बिलोचन चोर॥242॥

मूल

राजत राज समाज महुँ कोसलराज किसोर।
सुन्दर स्यामल गौर तन बिस्व बिलोचन चोर॥242॥

भावार्थ

सुन्दर साँवले और गोरे शरीर वाले तथा विश्वभर के नेत्रों को चुराने वाले कोसलाधीश के कुमार राज समाज में (इस प्रकार) सुशोभित हो रहे हैं॥242॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

सहज मनोहर मूरति दोऊ। कोटि काम उपमा लघु सोऊ॥
सरद चन्द निन्दक मुख नीके। नीरज नयन भावते जी के॥1॥

मूल

सहज मनोहर मूरति दोऊ। कोटि काम उपमा लघु सोऊ॥
सरद चन्द निन्दक मुख नीके। नीरज नयन भावते जी के॥1॥

भावार्थ

दोनों मूर्तियाँ स्वभाव से ही (बिना किसी बनाव-श्रृङ्गार के) मन को हरने वाली हैं। करोडों कामदेवों की उपमा भी उनके लिए तुच्छ है। उनके सुन्दर मुख शरद् (पूर्णिमा) के चन्द्रमा की भी निन्दा करने वाले (उसे नीचा दिखाने वाले) हैं और कमल के समान नेत्र मन को बहुत ही भाते हैं॥1॥

चितवनि चारु मार मनु हरनी। भावति हृदय जाति नहिं बरनी॥
कल कपोल श्रुति कुण्डल लोला। चिबुक अधर सुन्दर मृदु बोला॥2॥

मूल

चितवनि चारु मार मनु हरनी। भावति हृदय जाति नहिं बरनी॥
कल कपोल श्रुति कुण्डल लोला। चिबुक अधर सुन्दर मृदु बोला॥2॥

भावार्थ

सुन्दर चितवन (सारे संसार के मन को हरने वाले) कामदेव के भी मन को हरने वाली है। वह हृदय को बहुत ही प्यारी लगती है, पर उसका वर्णन नहीं किया जा सकता। सुन्दर गाल हैं, कानों में चञ्चल (झूमते हुए) कुण्डल हैं। ठोड और अधर (होठ) सुन्दर हैं, कोमल वाणी है॥2॥

कुमुदबन्धु कर निन्दक हाँसा। भृकुटी बिकट मनोहर नासा॥
भाल बिसाल तिलक झलकाहीं। कच बिलोकि अलि अवलि लजाहीं॥3॥

मूल

कुमुदबन्धु कर निन्दक हाँसा। भृकुटी बिकट मनोहर नासा॥
भाल बिसाल तिलक झलकाहीं। कच बिलोकि अलि अवलि लजाहीं॥3॥

भावार्थ

हँसी, चन्द्रमा की किरणों का तिरस्कार करने वाली है। भौंहें टेढी और नासिका मनोहर है। (ऊँचे) चौडे ललाट पर तिलक झलक रहे हैं (दीप्तिमान हो रहे हैं)। (काले घुँघराले) बालों को देखकर भौंरों की पङ्क्तियाँ भी लजा जाती हैं॥3॥

पीत चौतनीं सिरन्हि सुहाईं। कुसुम कलीं बिच बीच बनाईं॥
रेखें रुचिर कम्बु कल गीवाँ। जनु त्रिभुवन सुषमा की सीवाँ॥4॥

मूल

पीत चौतनीं सिरन्हि सुहाईं। कुसुम कलीं बिच बीच बनाईं॥
रेखें रुचिर कम्बु कल गीवाँ। जनु त्रिभुवन सुषमा की सीवाँ॥4॥

भावार्थ

पीली चौकोनी टोपियाँ सिरों पर सुशोभित हैं, जिनके बीच-बीच में फूलों की कलियाँ बनाई (काढी) हुई हैं। शङ्ख के समान सुन्दर (गोल) गले में मनोहर तीन रेखाएँ हैं, जो मानो तीनों लोकों की सुन्दरता की सीमा (को बता रही) हैं॥4॥