01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
सतानन्द पद बन्दि प्रभु बैठे गुर पहिं जाइ।
चलहु तात मुनि कहेउ तब पठवा जनक बोलाइ॥239॥
मूल
सतानन्द पद बन्दि प्रभु बैठे गुर पहिं जाइ।
चलहु तात मुनि कहेउ तब पठवा जनक बोलाइ॥239॥
भावार्थ
शतानन्दजी के चरणों की वन्दना करके प्रभु श्री रामचन्द्रजी गुरुजी के पास जा बैठे। तब मुनि ने कहा- हे तात! चलो, जनकजी ने बुला भेजा है॥239॥
मासपारायण, आठवाँ विश्राम
नवाह्न पारायण, दूसरा विश्राम
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सीय स्वयम्बरू देखिअ जाई। ईसु काहि धौं देइ बडाई॥
लखन कहा जस भाजनु सोई। नाथ कृपा तव जापर होई॥1॥
मूल
सीय स्वयम्बरू देखिअ जाई। ईसु काहि धौं देइ बडाई॥
लखन कहा जस भाजनु सोई। नाथ कृपा तव जापर होई॥1॥
भावार्थ
चलकर सीताजी के स्वयंवर को देखना चाहिए। देखें ईश्वर किसको बडाई देते हैं। लक्ष्मणजी ने कहा- हे नाथ! जिस पर आपकी कृपा होगी, वही बडाई का पात्र होगा (धनुष तोडने का श्रेय उसी को प्राप्त होगा)॥1॥
हरषे मुनि सब सुनि बर बानी। दीन्हि असीस सबहिं सुखु मानी॥
पुनि मुनिबृन्द समेत कृपाला। देखन चले धनुषमख साला॥2॥
मूल
हरषे मुनि सब सुनि बर बानी। दीन्हि असीस सबहिं सुखु मानी॥
पुनि मुनिबृन्द समेत कृपाला। देखन चले धनुषमख साला॥2॥
भावार्थ
इस श्रेष्ठ वाणी को सुनकर सब मुनि प्रसन्न हुए। सभी ने सुख मानकर आशीर्वाद दिया। फिर मुनियों के समूह सहित कृपालु श्री रामचन्द्रजी धनुष यज्ञशाला देखने चले॥2॥
रङ्गभूमि आए दोउ भाई। असि सुधि सब पुरबासिन्ह पाई॥
चले सकल गृह काज बिसारी। बाल जुबान जरठ नर नारी॥3॥
मूल
रङ्गभूमि आए दोउ भाई। असि सुधि सब पुरबासिन्ह पाई॥
चले सकल गृह काज बिसारी। बाल जुबान जरठ नर नारी॥3॥
भावार्थ
दोनों भाई रङ्गभूमि में आए हैं, ऐसी खबर जब सब नगर निवासियों ने पाई, तब बालक, जवान, बूढे, स्त्री, पुरुष सभी घर और काम-काज को भुलाकर चल दिए॥3॥
देखी जनक भीर भै भारी। सुचि सेवक सब लिए हँकारी॥
तुरत सकल लोगन्ह पहिं जाहू। आसन उचित देहु सब काहू॥4॥
मूल
देखी जनक भीर भै भारी। सुचि सेवक सब लिए हँकारी॥
तुरत सकल लोगन्ह पहिं जाहू। आसन उचित देहु सब काहू॥4॥
भावार्थ
जब जनकजी ने देखा कि बडी भीड हो गई है, तब उन्होन्ने सब विश्वासपात्र सेवकों को बुलवा लिया और कहा- तुम लोग तुरन्त सब लोगों के पास जाओ और सब किसी को यथायोग्य आसन दो॥4॥