232

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

लताभवन तें प्रगट भे तेहि अवसर दोउ भाइ।
तकिसे जनु जुग बिमल बिधु जलद पटल बिलगाई॥232॥

मूल

लताभवन तें प्रगट भे तेहि अवसर दोउ भाइ।
तकिसे जनु जुग बिमल बिधु जलद पटल बिलगाई॥232॥

भावार्थ

उसी समय दोनों भाई लता मण्डप (कुञ्ज) में से प्रकट हुए। मानो दो निर्मल चन्द्रमा बादलों के परदे को हटाकर निकले हों॥232॥

02 चौपाई

सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा। नील पीत जलजाभ सरीरा॥
मोरपङ्ख सिर सोहत नीके। गुच्छ बीच बिच कुसुम कली के॥1॥

मूल

सोभा सीवँ सुभग दोउ बीरा। नील पीत जलजाभ सरीरा॥
मोरपङ्ख सिर सोहत नीके। गुच्छ बीच बिच कुसुम कली के॥1॥

भावार्थ

दोनों सुन्दर भाई शोभा की सीमा हैं। उनके शरीर की आभा नीले और पीले कमल की सी है। सिर पर सुन्दर मोरपङ्ख सुशोभित हैं। उनके बीच-बीच में फूलों की कलियों के गुच्छे लगे हैं॥1॥

भाल तिलक श्रम बिन्दु सुहाए। श्रवन सुभग भूषन छबि छाए॥
बिकट भृकुटि कच घूघरवारे। नव सरोज लोचन रतनारे॥2॥

मूल

भाल तिलक श्रम बिन्दु सुहाए। श्रवन सुभग भूषन छबि छाए॥
बिकट भृकुटि कच घूघरवारे। नव सरोज लोचन रतनारे॥2॥

भावार्थ

माथे पर तिलक और पसीने की बूँदें शोभायमान हैं। कानों में सुन्दर भूषणों की छबि छाई है। टेढी भौंहें और घुँघराले बाल हैं। नए लाल कमल के समान रतनारे (लाल) नेत्र हैं॥2॥

चारु चिबुक नासिका कपोला। हास बिलास लेत मनु मोला॥
मुखछबि कहि न जाइ मोहि पाहीं। जो बिलोकि बहु काम लजाहीं॥3॥

मूल

चारु चिबुक नासिका कपोला। हास बिलास लेत मनु मोला॥
मुखछबि कहि न जाइ मोहि पाहीं। जो बिलोकि बहु काम लजाहीं॥3॥

भावार्थ

ठोडी नाक और गाल बडे सुन्दर हैं और हँसी की शोभा मन को मोल लिए लेती है। मुख की छबि तो मुझसे कही ही नहीं जाती, जिसे देखकर बहुत से कामदेव लजा जाते हैं॥3॥

उर मनि माल कम्बु कल गीवा। काम कलभ कर भुज बलसींवा॥
सुमन समेत बाम कर दोना। सावँर कुअँर सखी सुठि लोना॥4॥

मूल

उर मनि माल कम्बु कल गीवा। काम कलभ कर भुज बलसींवा॥
सुमन समेत बाम कर दोना। सावँर कुअँर सखी सुठि लोना॥4॥

भावार्थ

वक्षःस्थल पर मणियों की माला है। शङ्ख के सदृश सुन्दर गला है। कामदेव के हाथी के बच्चे की सूँड के समान (उतार-चढाव वाली एवं कोमल) भुजाएँ हैं, जो बल की सीमा हैं। जिसके बाएँ हाथ में फूलों सहित दोना है, हे सखि! वह साँवला कुँअर तो बहुत ही सलोना है॥4॥