01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
बागु तडागु बिलोकि प्रभु हरषे बन्धु समेत।
परम रम्य आरामु यहु जो रामहि सुख देत॥227॥
मूल
बागु तडागु बिलोकि प्रभु हरषे बन्धु समेत।
परम रम्य आरामु यहु जो रामहि सुख देत॥227॥
भावार्थ
बाग और सरोवर को देखकर प्रभु श्री रामचन्द्रजी भाई लक्ष्मण सहित हर्षित हुए। यह बाग (वास्तव में) परम रमणीय है, जो (जगत को सुख देने वाले) श्री रामचन्द्रजी को सुख दे रहा है॥227॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
चहुँ दिसि चितइ पूँछि मालीगन। लगे लेन दल फूल मुदित मन॥
तेहि अवसर सीता तहँ आई। गिरिजा पूजन जननि पठाई॥1॥
मूल
चहुँ दिसि चितइ पूँछि मालीगन। लगे लेन दल फूल मुदित मन॥
तेहि अवसर सीता तहँ आई। गिरिजा पूजन जननि पठाई॥1॥
भावार्थ
चारों ओर दृष्टि डालकर और मालियों से पूछकर वे प्रसन्न मन से पत्र-पुष्प लेने लगे। उसी समय सीताजी वहाँ आईं। माता ने उन्हें गिरिजाजी (पार्वती) की पूजा करने के लिए भेजा था॥1॥
सङ्ग सखीं सब सुभग सयानीं। गावहिं गीत मनोहर बानीं॥
सर समीप गिरिजा गृह सोहा। बरनि न जाइ देखि मनु मोहा॥2॥
मूल
सङ्ग सखीं सब सुभग सयानीं। गावहिं गीत मनोहर बानीं॥
सर समीप गिरिजा गृह सोहा। बरनि न जाइ देखि मनु मोहा॥2॥
भावार्थ
साथ में सब सुन्दरी और सयानी सखियाँ हैं, जो मनोहर वाणी से गीत गा रही हैं। सरोवर के पास गिरिजाजी का मन्दिर सुशोभित है, जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता, देखकर मन मोहित हो जाता है॥2॥
मज्जनु करि सर सखिन्ह समेता। गई मुदित मन गौरि निकेता॥
पूजा कीन्हि अधिक अनुरागा। निज अनुरूप सुभग बरु मागा॥3॥
मूल
मज्जनु करि सर सखिन्ह समेता। गई मुदित मन गौरि निकेता॥
पूजा कीन्हि अधिक अनुरागा। निज अनुरूप सुभग बरु मागा॥3॥
भावार्थ
सखियों सहित सरोवर में स्नान करके सीताजी प्रसन्न मन से गिरिजाजी के मन्दिर में गईं। उन्होन्ने बडे प्रेम से पूजा की और अपने योग्य सुन्दर वर माँगा॥3॥
एक सखी सिय सङ्गु बिहाई। गई रही देखन फुलवाई॥
तेहिं दोउ बन्धु बिलोके जाई। प्रेम बिबस सीता पहिं आई॥4॥
मूल
एक सखी सिय सङ्गु बिहाई। गई रही देखन फुलवाई॥
तेहिं दोउ बन्धु बिलोके जाई। प्रेम बिबस सीता पहिं आई॥4॥
भावार्थ
एक सखी सीताजी का साथ छोडकर फुलवाडी देखने चली गई थी। उसने जाकर दोनों भाइयों को देखा और प्रेम में विह्वल होकर वह सीताजी के पास आई॥4॥