01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
जाइ देखि आवहु नगरु सुख निधान दोउ भाइ।
करहु सुफल सब के नयन सुन्दर बदन देखाइ॥218॥
मूल
जाइ देखि आवहु नगरु सुख निधान दोउ भाइ।
करहु सुफल सब के नयन सुन्दर बदन देखाइ॥218॥
भावार्थ
सुख के निधान दोनों भाई जाकर नगर देख आओ। अपने सुन्दर मुख दिखलाकर सब (नगर निवासियों) के नेत्रों को सफल करो॥218॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
मुनि पद कमल बन्दि दोउ भ्राता। चले लोक लोचन सुख दाता॥
बालक बृन्द देखि अति सोभा। लगे सङ्ग लोचन मनु लोभा॥1॥
मूल
मुनि पद कमल बन्दि दोउ भ्राता। चले लोक लोचन सुख दाता॥
बालक बृन्द देखि अति सोभा। लगे सङ्ग लोचन मनु लोभा॥1॥
भावार्थ
सब लोकों के नेत्रों को सुख देने वाले दोनों भाई मुनि के चरणकमलों की वन्दना करके चले। बालकों के झुण्ड इन (के सौन्दर्य) की अत्यन्त शोभा देखकर साथ लग गए। उनके नेत्र और मन (इनकी माधुरी पर) लुभा गए॥1॥
पीत बसन परिकर कटि भाथा। चारु चाप सर सोहत हाथा॥
तन अनुहरत सुचन्दन खोरी। स्यामल गौर मनोहर जोरी॥2॥
मूल
पीत बसन परिकर कटि भाथा। चारु चाप सर सोहत हाथा॥
तन अनुहरत सुचन्दन खोरी। स्यामल गौर मनोहर जोरी॥2॥
भावार्थ
(दोनों भाइयों के) पीले रङ्ग के वस्त्र हैं, कमर के (पीले) दुपट्टों में तरकस बँधे हैं। हाथों में सुन्दर धनुष-बाण सुशोभित हैं। (श्याम और गौर वर्ण के) शरीरों के अनुकूल (अर्थात् जिस पर जिस रङ्ग का चन्दन अधिक फबे उस पर उसी रङ्ग के) सुन्दर चन्दन की खौर लगी है। साँवरे और गोरे (रङ्ग) की मनोहर जोडी है॥2॥
केहरि कन्धर बाहु बिसाला। उर अति रुचिर नागमनि माला॥
सुभग सोन सरसीरुह लोचन। बदन मयङ्क तापत्रय मोचन॥3॥
मूल
केहरि कन्धर बाहु बिसाला। उर अति रुचिर नागमनि माला॥
सुभग सोन सरसीरुह लोचन। बदन मयङ्क तापत्रय मोचन॥3॥
भावार्थ
सिंह के समान (पुष्ट) गर्दन (गले का पिछला भाग) है, विशाल भुजाएँ हैं। (चौडी) छाती पर अत्यन्त सुन्दर गजमुक्ता की माला है। सुन्दर लाल कमल के समान नेत्र हैं। तीनों तापों से छुडाने वाला चन्द्रमा के समान मुख है॥3॥
कानन्हि कनक फूल छबि देहीं। चितवत चितहि चोरि जनु लेहीं॥
चितवनि चारु भृकुटि बर बाँकी। तिलक रेख सोभा जनु चाँकी॥4॥
मूल
कानन्हि कनक फूल छबि देहीं। चितवत चितहि चोरि जनु लेहीं॥
चितवनि चारु भृकुटि बर बाँकी। तिलक रेख सोभा जनु चाँकी॥4॥
भावार्थ
कानों में सोने के कर्णफूल (अत्यन्त) शोभा दे रहे हैं और देखते ही (देखने वाले के) चित्त को मानो चुरा लेते हैं। उनकी चितवन (दृष्टि) बडी मनोहर है और भौंहें तिरछी एवं सुन्दर हैं। (माथे पर) तिलक की रेखाएँ ऐसी सुन्दर हैं, मानो (मूर्तिमती) शोभा पर मुहर लगा दी गई है॥4॥