01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
धवल धाम मनि पुरट पट सुघटित नाना भाँति।
सिय निवास सुन्दर सदन सोभा किमि कहि जाति॥213॥
मूल
धवल धाम मनि पुरट पट सुघटित नाना भाँति।
सिय निवास सुन्दर सदन सोभा किमि कहि जाति॥213॥
भावार्थ
उज्ज्वल महलों में अनेक प्रकार के सुन्दर रीति से बने हुए मणि जटित सोने की जरी के परदे लगे हैं। सीताजी के रहने के सुन्दर महल की शोभा का वर्णन किया ही कैसे जा सकता है॥213॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुभग द्वार सब कुलिस कपाटा। भूप भीर नट मागध भाटा॥
बनी बिसाल बाजि गज साला। हय गय रख सङ्कुल सब काला॥1॥
मूल
सुभग द्वार सब कुलिस कपाटा। भूप भीर नट मागध भाटा॥
बनी बिसाल बाजि गज साला। हय गय रख सङ्कुल सब काला॥1॥
भावार्थ
राजमहल के सब दरवाजे (फाटक) सुन्दर हैं, जिनमें वज्र के (मजबूत अथवा हीरों के चमकते हुए) किवाड लगे हैं। वहाँ (मातहत) राजाओं, नटों, मागधों और भाटों की भीड लगी रहती है। घोडों और हाथियों के लिए बहुत बडी-बडी घुडसालें और गजशालाएँ (फीलखाने) बनी हुई हैं, जो सब समय घोडे, हाथी और रथों से भरी रहती हैं॥1॥
सूर सचिव सेनप बहुतेरे। नृपगृह सरिस सदन सब केरे॥
पुर बाहेर सर सरित समीपा। उतरे जहँ तहँ बिपुल महीपा॥2॥
मूल
सूर सचिव सेनप बहुतेरे। नृपगृह सरिस सदन सब केरे॥
पुर बाहेर सर सरित समीपा। उतरे जहँ तहँ बिपुल महीपा॥2॥
भावार्थ
बहुत से शूरवीर, मन्त्री और सेनापति हैं। उन सबके घर भी राजमहल सरीखे ही हैं। नगर के बाहर तालाब और नदी के निकट जहाँ-तहाँ बहुत से राजा लोग उतरे हुए (डेरा डाले हुए) हैं॥2॥
देखि अनूप एक अँवराई। सब सुपास सब भाँति सुहाई।
कौसिक कहेउ मोर मनु माना। इहाँ रहिअ रघुबीर सुजाना॥3॥
मूल
देखि अनूप एक अँवराई। सब सुपास सब भाँति सुहाई।
कौसिक कहेउ मोर मनु माना। इहाँ रहिअ रघुबीर सुजाना॥3॥
भावार्थ
(वहीं) आमों का एक अनुपम बाग देखकर, जहाँ सब प्रकार के सुभीते थे और जो सब तरह से सुहावना था, विश्वामित्रजी ने कहा- हे सुजान रघुवीर! मेरा मन कहता है कि यहीं रहा जाए॥3॥
भलेहिं नाथ कहि कृपानिकेता। उतरे तहँ मुनि बृन्द समेता॥
बिस्वामित्र महामुनि आए। समाचार मिथिलापति पाए॥4॥
मूल
भलेहिं नाथ कहि कृपानिकेता। उतरे तहँ मुनि बृन्द समेता॥
बिस्वामित्र महामुनि आए। समाचार मिथिलापति पाए॥4॥
भावार्थ
कृपा के धाम श्री रामचन्द्रजी ‘बहुत अच्छा स्वामिन्!’ कहकर वहीं मुनियों के समूह के साथ ठहर गए। मिथिलापति जनकजी ने जब यह समाचार पाया कि महामुनि विश्वामित्र आए हैं,॥4॥