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01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान॥200॥

मूल

प्रेम मगन कौसल्या निसि दिन जात न जान।
सुत सनेह बस माता बालचरित कर गान॥200॥

भावार्थ

प्रेम में मग्न कौसल्याजी रात और दिन का बीतना नहीं जानती थीं। पुत्र के स्नेहवश माता उनके बालचरित्रों का गान किया करतीं॥200॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

एक बार जननीं अन्हवाए। करि सिङ्गार पलनाँ पौढाए॥
निज कुल इष्टदेव भगवाना। पूजा हेतु कीन्ह अस्नाना॥1॥

मूल

एक बार जननीं अन्हवाए। करि सिङ्गार पलनाँ पौढाए॥
निज कुल इष्टदेव भगवाना। पूजा हेतु कीन्ह अस्नाना॥1॥

भावार्थ

एक बार माता ने श्री रामचन्द्रजी को स्नान कराया और श्रृङ्गार करके पालने पर पौढा दिया। फिर अपने कुल के इष्टदेव भगवान की पूजा के लिए स्नान किया॥1॥

करि पूजा नैबेद्य चढावा। आपु गई जहँ पाक बनावा॥
बहुरि मातु तहवाँ चलि आई। भोजन करत देख सुत जाई॥2॥

मूल

करि पूजा नैबेद्य चढावा। आपु गई जहँ पाक बनावा॥
बहुरि मातु तहवाँ चलि आई। भोजन करत देख सुत जाई॥2॥

भावार्थ

पूजा करके नैवेद्य चढाया और स्वयं वहाँ गईं, जहाँ रसोई बनाई गई थी। फिर माता वहीं (पूजा के स्थान में) लौट आई और वहाँ आने पर पुत्र को (इष्टदेव भगवान के लिए चढाए हुए नैवेद्य का) भोजन करते देखा॥2॥

गै जननी सिसु पहिं भयभीता। देखा बाल तहाँ पुनि सूता॥
बहुरि आइ देखा सुत सोई। हृदयँ कम्प मन धीर न होई॥3॥

मूल

गै जननी सिसु पहिं भयभीता। देखा बाल तहाँ पुनि सूता॥
बहुरि आइ देखा सुत सोई। हृदयँ कम्प मन धीर न होई॥3॥

भावार्थ

माता भयभीत होकर (पालने में सोया था, यहाँ किसने लाकर बैठा दिया, इस बात से डरकर) पुत्र के पास गई, तो वहाँ बालक को सोया हुआ देखा। फिर (पूजा स्थान में लौटकर) देखा कि वही पुत्र वहाँ (भोजन कर रहा) है। उनके हृदय में कम्प होने लगा और मन को धीरज नहीं होता॥3॥

इहाँ उहाँ दुइ बालक देखा। मतिभ्रम मोर कि आन बिसेषा॥
देखि राम जननी अकुलानी। प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी॥4॥

मूल

इहाँ उहाँ दुइ बालक देखा। मतिभ्रम मोर कि आन बिसेषा॥
देखि राम जननी अकुलानी। प्रभु हँसि दीन्ह मधुर मुसुकानी॥4॥

भावार्थ

(वह सोचने लगी कि) यहाँ और वहाँ मैन्ने दो बालक देखे। यह मेरी बुद्धि का भ्रम है या और कोई विशेष कारण है? प्रभु श्री रामचन्द्रजी माता को घबडाई हुई देखकर मधुर मुस्कान से हँस दिए॥4॥