01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
ब्यापक ब्रह्म निरञ्जन निर्गुन बिगत बिनोद।
सो अज प्रेम भगति बस कौसल्या कें गोद॥198॥
मूल
ब्यापक ब्रह्म निरञ्जन निर्गुन बिगत बिनोद।
सो अज प्रेम भगति बस कौसल्या कें गोद॥198॥
भावार्थ
जो सर्वव्यापक, निरञ्जन (मायारहित), निर्गुण, विनोदरहित और अजन्मे ब्रह्म हैं, वही प्रेम और भक्ति के वश कौसल्याजी की गोद में (खेल रहे) हैं॥198॥
02 चौपाई
काम कोटि छबि स्याम सरीरा। नील कञ्ज बारिद गम्भीरा॥
अरुन चरन पङ्कज नख जोती। कमल दलन्हि बैठे जनु मोती॥1॥
मूल
काम कोटि छबि स्याम सरीरा। नील कञ्ज बारिद गम्भीरा॥
अरुन चरन पङ्कज नख जोती। कमल दलन्हि बैठे जनु मोती॥1॥
भावार्थ
उनके नीलकमल और गम्भीर (जल से भरे हुए) मेघ के समान श्याम शरीर में करोडों कामदेवों की शोभा है। लाल-लाल चरण कमलों के नखों की (शुभ्र) ज्योति ऐसी मालूम होती है जैसे (लाल) कमल के पत्तों पर मोती स्थिर हो गए हों॥1॥
रेख कुलिस ध्वज अङ्कुस सोहे। नूपुर धुनि सुनि मुनि मन मोहे॥
कटि किङ्किनी उदर त्रय रेखा। नाभि गभीर जान जेहिं देखा॥2॥
मूल
रेख कुलिस ध्वज अङ्कुस सोहे। नूपुर धुनि सुनि मुनि मन मोहे॥
कटि किङ्किनी उदर त्रय रेखा। नाभि गभीर जान जेहिं देखा॥2॥
भावार्थ
(चरणतलों में) वज्र, ध्वजा और अङ्कुश के चिह्न शोभित हैं। नूपुर (पेञ्जनी) की ध्वनि सुनकर मुनियों का भी मन मोहित हो जाता है। कमर में करधनी और पेट पर तीन रेखाएँ (त्रिवली) हैं। नाभि की गम्भीरता को तो वही जानते हैं, जिन्होन्ने उसे देखा है॥2॥
भुज बिसाल भूषन जुत भूरी। हियँ हरि नख अति सोभा रूरी॥
उर मनिहार पदिक की सोभा। बिप्र चरन देखत मन लोभा॥3॥
मूल
भुज बिसाल भूषन जुत भूरी। हियँ हरि नख अति सोभा रूरी॥
उर मनिहार पदिक की सोभा। बिप्र चरन देखत मन लोभा॥3॥
भावार्थ
बहुत से आभूषणों से सुशोभित विशाल भुजाएँ हैं। हृदय पर बाघ के नख की बहुत ही निराली छटा है। छाती पर रत्नों से युक्त मणियों के हार की शोभा और ब्राह्मण (भृगु) के चरण चिह्न को देखते ही मन लुभा जाता है॥3॥
कम्बु कण्ठ अति चिबुक सुहाई। आनन अमित मदन छबि छाई॥
दुइ दुइ दसन अधर अरुनारे। नासा तिलक को बरनै पारे॥4॥
मूल
कम्बु कण्ठ अति चिबुक सुहाई। आनन अमित मदन छबि छाई॥
दुइ दुइ दसन अधर अरुनारे। नासा तिलक को बरनै पारे॥4॥
भावार्थ
कण्ठ शङ्ख के समान (उतार-चढाव वाला, तीन रेखाओं से सुशोभित) है और ठोडी बहुत ही सुन्दर है। मुख पर असङ्ख्य कामदेवों की छटा छा रही है। दो-दो सुन्दर दँतुलियाँ हैं, लाल-लाल होठ हैं। नासिका और तिलक (के सौन्दर्य) का तो वर्णन ही कौन कर सकता है॥4॥
सुन्दर श्रवन सुचारु कपोला। अति प्रिय मधुर तोतरे बोला॥
चिक्कन कच कुञ्चित गभुआरे। बहु प्रकार रचि मातु सँवारे॥5॥
मूल
सुन्दर श्रवन सुचारु कपोला। अति प्रिय मधुर तोतरे बोला॥
चिक्कन कच कुञ्चित गभुआरे। बहु प्रकार रचि मातु सँवारे॥5॥
भावार्थ
सुन्दर कान और बहुत ही सुन्दर गाल हैं। मधुर तोतले शब्द बहुत ही प्यारे लगते हैं। जन्म के समय से रखे हुए चिकने और घुँघराले बाल हैं, जिनको माता ने बहुत प्रकार से बनाकर सँवार दिया है॥5॥
पीत झगुलिआ तनु पहिराई। जानु पानि बिचरनि मोहि भाई॥
रूप सकहिं नहिं कहि श्रुति सेषा। सो जानइ सपनेहुँ जेहिं देखा॥6॥
मूल
पीत झगुलिआ तनु पहिराई। जानु पानि बिचरनि मोहि भाई॥
रूप सकहिं नहिं कहि श्रुति सेषा। सो जानइ सपनेहुँ जेहिं देखा॥6॥
भावार्थ
शरीर पर पीली झँगुली पहनाई हुई है। उनका घुटनों और हाथों के बल चलना मुझे बहुत ही प्यारा लगता है। उनके रूप का वर्णन वेद और शेषजी भी नहीं कर सकते। उसे वही जानता है, जिसने कभी स्वप्न में भी देखा हो॥6॥