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01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

लच्छन धाम राम प्रिय सकल जगत आधार।
गुरु बसिष्ठ तेहि राखा लछिमन नाम उदार॥197॥

मूल

लच्छन धाम राम प्रिय सकल जगत आधार।
गुरु बसिष्ठ तेहि राखा लछिमन नाम उदार॥197॥

भावार्थ

जो शुभ लक्षणों के धाम, श्री रामजी के प्यारे और सारे जगत के आधार हैं, गुरु वशिष्ठजी ने उनका ‘लक्ष्मण’ ऐसा श्रेष्ठ नाम रखा है॥197॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

धरे नाम गुर हृदयँ बिचारी। बेद तत्व नृप तव सुत चारी॥
मुनि धन जन सरबस सिव प्राना। बाल केलि रस तेहिं सुख माना॥1॥

मूल

धरे नाम गुर हृदयँ बिचारी। बेद तत्व नृप तव सुत चारी॥
मुनि धन जन सरबस सिव प्राना। बाल केलि रस तेहिं सुख माना॥1॥

भावार्थ

गुरुजी ने हृदय में विचार कर ये नाम रखे (और कहा-) हे राजन्‌! तुम्हारे चारों पुत्र वेद के तत्त्व (साक्षात्‌ परात्पर भगवान) हैं। जो मुनियों के धन, भक्तों के सर्वस्व और शिवजी के प्राण हैं, उन्होन्ने (इस समय तुम लोगों के प्रेमवश) बाल लीला के रस में सुख माना है॥1॥

बारेहि ते निज हित पति जानी। लछिमन राम चरन रति मानी॥
भरत सत्रुहन दूनउ भाई। प्रभु सेवक जसि प्रीति बडाई॥2॥

मूल

बारेहि ते निज हित पति जानी। लछिमन राम चरन रति मानी॥
भरत सत्रुहन दूनउ भाई। प्रभु सेवक जसि प्रीति बडाई॥2॥

भावार्थ

बचपन से ही श्री रामचन्द्रजी को अपना परम हितैषी स्वामी जानकर लक्ष्मणजी ने उनके चरणों में प्रीति जोड ली। भरत और शत्रुघ्न दोनों भाइयों में स्वामी और सेवक की जिस प्रीति की प्रशंसा है, वैसी प्रीति हो गई॥2॥

स्याम गौर सुन्दर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी॥
चारिउ सील रूप गुन धामा। तदपि अधिक सुखसागर रामा॥3॥

मूल

स्याम गौर सुन्दर दोउ जोरी। निरखहिं छबि जननीं तृन तोरी॥
चारिउ सील रूप गुन धामा। तदपि अधिक सुखसागर रामा॥3॥

भावार्थ

श्याम और गौर शरीर वाली दोनों सुन्दर जोडियों की शोभा को देखकर माताएँ तृण तोडती हैं (जिसमें दीठ न लग जाए)। यों तो चारों ही पुत्र शील, रूप और गुण के धाम हैं, तो भी सुख के समुद्र श्री रामचन्द्रजी सबसे अधिक हैं॥3॥

हृदयँ अनुग्रह इन्दु प्रकासा। सूचत किरन मनोहर हासा॥
कबहुँ उछङ्ग कबहुँ बर पलना। मातु दुलारइ कहि प्रिय ललना॥4॥

मूल

हृदयँ अनुग्रह इन्दु प्रकासा। सूचत किरन मनोहर हासा॥
कबहुँ उछङ्ग कबहुँ बर पलना। मातु दुलारइ कहि प्रिय ललना॥4॥

भावार्थ

उनके हृदय में कृपा रूपी चन्द्रमा प्रकाशित है। उनकी मन को हरने वाली हँसी उस (कृपा रूपी चन्द्रमा) की किरणों को सूचित करती है। कभी गोद में (लेकर) और कभी उत्तम पालने में (लिटाकर) माता ‘प्यारे ललना!’ कहकर दुलार करती है॥4॥