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01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

नन्दीमुख सराध करि जातकरम सब कीन्ह।
हाटक धेनु बसन मनि नृप बिप्रन्ह कहँ दीन्ह॥193॥

मूल

नन्दीमुख सराध करि जातकरम सब कीन्ह।
हाटक धेनु बसन मनि नृप बिप्रन्ह कहँ दीन्ह॥193॥

भावार्थ

फिर राजा ने नान्दीमुख श्राद्ध करके सब जातकर्म-संस्कार आदि किए और ब्राह्मणों को सोना, गो, वस्त्र और मणियों का दान दिया॥193॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

ध्वज पताक तोरन पुर छावा। कहि न जाइ जेहि भाँति बनावा॥
सुमनबृष्टि अकास तें होई। ब्रह्मानन्द मगन सब लोई॥1॥

मूल

ध्वज पताक तोरन पुर छावा। कहि न जाइ जेहि भाँति बनावा॥
सुमनबृष्टि अकास तें होई। ब्रह्मानन्द मगन सब लोई॥1॥

भावार्थ

ध्वजा, पताका और तोरणों से नगर छा गया। जिस प्रकार से वह सजाया गया, उसका तो वर्णन ही नहीं हो सकता। आकाश से फूलों की वर्षा हो रही है, सब लोग ब्रह्मानन्द में मग्न हैं॥1॥

बृन्द बृन्द मिलि चलीं लोगाईं। सहज सिङ्गार किएँ उठि धाईं॥
कनक कलस मङ्गल भरि थारा। गावत पैठहिं भूप दुआरा॥2॥

मूल

बृन्द बृन्द मिलि चलीं लोगाईं। सहज सिङ्गार किएँ उठि धाईं॥
कनक कलस मङ्गल भरि थारा। गावत पैठहिं भूप दुआरा॥2॥

भावार्थ

स्त्रियाँ झुण्ड की झुण्ड मिलकर चलीं। स्वाभाविक श्रृङ्गार किए ही वे उठ दौडीं। सोने का कलश लेकर और थालों में मङ्गल द्रव्य भरकर गाती हुईं राजद्वार में प्रवेश करती हैं॥2॥

करि आरति नेवछावरि करहीं। बार बार सिसु चरनन्हि परहीं॥
मागध सूत बन्दिगन गायक। पावन गुन गावहिं रघुनायक॥3॥

मूल

करि आरति नेवछावरि करहीं। बार बार सिसु चरनन्हि परहीं॥
मागध सूत बन्दिगन गायक। पावन गुन गावहिं रघुनायक॥3॥

भावार्थ

वे आरती करके निछावर करती हैं और बार-बार बच्चे के चरणों पर गिरती हैं। मागध, सूत, वन्दीजन और गवैये रघुकुल के स्वामी के पवित्र गुणों का गान करते हैं॥3॥

सर्बस दान दीन्ह सब काहू। जेहिं पावा राखा नहिं ताहू॥
मृगमद चन्दन कुङ्कुम कीचा। मची सकल बीथिन्ह बिच बीचा॥4॥

मूल

सर्बस दान दीन्ह सब काहू। जेहिं पावा राखा नहिं ताहू॥
मृगमद चन्दन कुङ्कुम कीचा। मची सकल बीथिन्ह बिच बीचा॥4॥

भावार्थ

राजा ने सब किसी को भरपूर दान दिया। जिसने पाया उसने भी नहीं रखा (लुटा दिया)। (नगर की) सभी गलियों के बीच-बीच में कस्तूरी, चन्दन और केसर की कीच मच गई॥4॥