190

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥190॥

मूल

जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल।
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल॥190॥

भावार्थ

योग, लग्न, ग्रह, वार और तिथि सभी अनुकूल हो गए। जड और चेतन सब हर्ष से भर गए। (क्योङ्कि) श्री राम का जन्म सुख का मूल है॥190॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥1॥

मूल

नौमी तिथि मधु मास पुनीता। सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता॥
मध्यदिवस अति सीत न घामा। पावन काल लोक बिश्रामा॥1॥

भावार्थ

पवित्र चैत्र का महीना था, नवमी तिथि थी। शुक्ल पक्ष और भगवान का प्रिय अभिजित्‌ मुहूर्त था। दोपहर का समय था। न बहुत सर्दी थी, न धूप (गरमी) थी। वह पवित्र समय सब लोकों को शान्ति देने वाला था॥1॥

सीतल मन्द सुरभि बह बाऊ। हरषित सुर सन्तन मन चाऊ॥
बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा। स्रवहिं सकल सरिताऽमृतधारा॥2॥

मूल

सीतल मन्द सुरभि बह बाऊ। हरषित सुर सन्तन मन चाऊ॥
बन कुसुमित गिरिगन मनिआरा। स्रवहिं सकल सरिताऽमृतधारा॥2॥

भावार्थ

शीतल, मन्द और सुगन्धित पवन बह रहा था। देवता हर्षित थे और सन्तों के मन में (बडा) चाव था। वन फूले हुए थे, पर्वतों के समूह मणियों से जगमगा रहे थे और सारी नदियाँ अमृत की धारा बहा रही थीं॥2॥

सो अवसर बिरञ्चि जब जाना। चले सकल सुर साजि बिमाना॥
गगन बिमल सङ्कुल सुर जूथा। गावहिं गुन गन्धर्ब बरूथा॥3॥

मूल

सो अवसर बिरञ्चि जब जाना। चले सकल सुर साजि बिमाना॥
गगन बिमल सङ्कुल सुर जूथा। गावहिं गुन गन्धर्ब बरूथा॥3॥

भावार्थ

जब ब्रह्माजी ने वह (भगवान के प्रकट होने का) अवसर जाना तब (उनके समेत) सारे देवता विमान सजा-सजाकर चले। निर्मल आकाश देवताओं के समूहों से भर गया। गन्धर्वों के दल गुणों का गान करने लगे॥3॥

बरषहिं सुमन सुअञ्जुलि साजी। गहगहि गगन दुन्दुभी बाजी॥
अस्तुति करहिं नाग मुनि देवा। बहुबिधि लावहिं निज निज सेवा॥4॥

मूल

बरषहिं सुमन सुअञ्जुलि साजी। गहगहि गगन दुन्दुभी बाजी॥
अस्तुति करहिं नाग मुनि देवा। बहुबिधि लावहिं निज निज सेवा॥4॥

भावार्थ

और सुन्दर अञ्जलियों में सजा-सजाकर पुष्प बरसाने लगे। आकाश में घमाघम नगाडे बजने लगे। नाग, मुनि और देवता स्तुति करने लगे और बहुत प्रकार से अपनी-अपनी सेवा (उपहार) भेण्ट करने लगे॥4॥