179

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

कौतुकहीं कैलास पुनि लीन्हेसि जाइ उठाइ।
मनहुँ तौलि निज बाहुबल चला बहुत सुख पाइ॥179॥

मूल

कौतुकहीं कैलास पुनि लीन्हेसि जाइ उठाइ।
मनहुँ तौलि निज बाहुबल चला बहुत सुख पाइ॥179॥

भावार्थ

फिर उसने जाकर (एक बार) खिलवाड ही में कैलास पर्वत को उठा लिया और मानो अपनी भुजाओं का बल तौलकर, बहुत सुख पाकर वह वहाँ से चला आया॥179॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुख सम्पति सुत सेन सहाई। जय प्रताप बल बुद्धि बडाई॥
नित नूतन सब बाढत जाई। जिमि प्रतिलाभ लोभ अधिकाई॥1॥

मूल

सुख सम्पति सुत सेन सहाई। जय प्रताप बल बुद्धि बडाई॥
नित नूतन सब बाढत जाई। जिमि प्रतिलाभ लोभ अधिकाई॥1॥

भावार्थ

सुख, सम्पत्ति, पुत्र, सेना, सहायक, जय, प्रताप, बल, बुद्धि और बडाई- ये सब उसके नित्य नए (वैसे ही) बढते जाते थे, जैसे प्रत्येक लाभ पर लोभ बढता है॥1॥

अतिबल कुम्भकरन अस भ्राता। जेहि कहुँ नहिं प्रतिभट जग जाता॥
करइ पान सोवइ षट मासा। जागत होइ तिहूँ पुर त्रासा॥2॥

मूल

अतिबल कुम्भकरन अस भ्राता। जेहि कहुँ नहिं प्रतिभट जग जाता॥
करइ पान सोवइ षट मासा। जागत होइ तिहूँ पुर त्रासा॥2॥

भावार्थ

अत्यन्त बलवान्‌ कुम्भकर्ण सा उसका भाई था, जिसके जोड का योद्धा जगत में पैदा ही नहीं हुआ। वह मदिरा पीकर छह महीने सोया करता था। उसके जागते ही तीनों लोकों में तहलका मच जाता था॥2॥

जौं दिन प्रति अहार कर सोई। बिस्व बेगि सब चौपट होई॥
समर धीर नहिं जाइ बखाना। तेहि सम अमित बीर बलवाना॥3॥

मूल

जौं दिन प्रति अहार कर सोई। बिस्व बेगि सब चौपट होई॥
समर धीर नहिं जाइ बखाना। तेहि सम अमित बीर बलवाना॥3॥

भावार्थ

यदि वह प्रतिदिन भोजन करता, तब तो सम्पूर्ण विश्व शीघ्र ही चौपट (खाली) हो जाता। रणधीर ऐसा था कि जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। (लङ्का में) उसके ऐसे असङ्ख्य बलवान वीर थे॥3॥

बारिदनाद जेठ सुत तासू। भट महुँ प्रथम लीक जग जासू॥
जेहि न होइ रन सनमुख कोई। सुरपुर नितहिं परावन होई॥4॥

मूल

बारिदनाद जेठ सुत तासू। भट महुँ प्रथम लीक जग जासू॥
जेहि न होइ रन सनमुख कोई। सुरपुर नितहिं परावन होई॥4॥

भावार्थ

मेघनाद रावण का बडा लडका था, जिसका जगत के योद्धाओं में पहला नम्बर था। रण में कोई भी उसका सामना नहीं कर सकता था। स्वर्ग में तो (उसके भय से) नित्य भगदड मची रहती थी॥4॥