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01 दोहा

खाईं सिन्धु गभीर अति चारिहुँ दिसि फिरि आव।
कनक कोट मनि खचित दृढ बरनि न जाइ बनाव॥1॥

मूल

खाईं सिन्धु गभीर अति चारिहुँ दिसि फिरि आव।
कनक कोट मनि खचित दृढ बरनि न जाइ बनाव॥1॥

भावार्थ

उसे चारों ओर से समुद्र की अत्यन्त गहरी खाई घेरे हुए है। उस (दुर्ग) के मणियों से जडा हुआ सोने का मजबूत परकोटा है, जिसकी कारीगरी का वर्णन नहीं किया जा सकता॥1॥

हरि प्रेरित जेहिं कलप जोइ जातुधानपति होइ।
सूर प्रतापी अतुलबल दल समेत बस सोइ॥2॥

मूल

हरि प्रेरित जेहिं कलप जोइ जातुधानपति होइ।
सूर प्रतापी अतुलबल दल समेत बस सोइ॥2॥

भावार्थ

भगवान की प्रेरणा से जिस कल्प में जो राक्षसों का राजा (रावण) होता है, वही शूर, प्रतापी, अतुलित बलवान्‌ अपनी सेना सहित उस पुरी में बसता है॥2॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

रहे तहाँ निसिचर भट भारे। ते सब सुरन्ह समर सङ्घारे॥
अब तहँ रहहिं सक्र के प्रेरे। रच्छक कोटि जच्छपति केरे॥1॥

मूल

रहे तहाँ निसिचर भट भारे। ते सब सुरन्ह समर सङ्घारे॥
अब तहँ रहहिं सक्र के प्रेरे। रच्छक कोटि जच्छपति केरे॥1॥

भावार्थ

(पहले) वहाँ बडे-बडे योद्धा राक्षस रहते थे। देवताओं ने उन सबको युद्द में मार डाला। अब इन्द्र की प्रेरणा से वहाँ कुबेर के एक करोड रक्षक (यक्ष लोग) रहते हैं॥1॥

दसमुख कतहुँ खबरि असि पाई। सेन साजि गढ घेरेसि जाई॥
देखि बिकट भट बडि कटकाई। जच्छ जीव लै गए पराई॥2॥

मूल

दसमुख कतहुँ खबरि असि पाई। सेन साजि गढ घेरेसि जाई॥
देखि बिकट भट बडि कटकाई। जच्छ जीव लै गए पराई॥2॥

भावार्थ

रावण को कहीं ऐसी खबर मिली, तब उसने सेना सजाकर किले को जा घेरा। उस बडे विकट योद्धा और उसकी बडी सेना को देखकर यक्ष अपने प्राण लेकर भाग गए॥2॥

फिरि सब नगर दसानन देखा। गयउ सोच सुख भयउ बिसेषा॥
सुन्दर सहज अगम अनुमानी। कीन्हि तहाँ रावन रजधानी॥3॥

मूल

फिरि सब नगर दसानन देखा। गयउ सोच सुख भयउ बिसेषा॥
सुन्दर सहज अगम अनुमानी। कीन्हि तहाँ रावन रजधानी॥3॥

भावार्थ

तब रावण ने घूम-फिरकर सारा नगर देखा। उसकी (स्थान सम्बन्धी) चिन्ता मिट गई और उसे बहुत ही सुख हुआ। उस पुरी को स्वाभाविक ही सुन्दर और (बाहर वालों के लिए) दुर्गम अनुमान करके रावण ने वहाँ अपनी राजधानी कायम की॥3॥

जेहि जस जोग बाँटि गृह दीन्हे। सुखी सकल रजनीचर कीन्हें॥
एक बार कुबेर पर धावा। पुष्पक जान जीति लै आवा॥4॥

मूल

जेहि जस जोग बाँटि गृह दीन्हे। सुखी सकल रजनीचर कीन्हें॥
एक बार कुबेर पर धावा। पुष्पक जान जीति लै आवा॥4॥

भावार्थ

योग्यता के अनुसार घरों को बाँटकर रावण ने सब राक्षसों को सुखी किया। एक बार वह कुबेर पर चढ दौडा और उससे पुष्पक विमान को जीतकर ले आया॥4॥