177

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

गए बिभीषन पास पुनि कहेउ पुत्र बर मागु।
तेहिं मागेउ भगवन्त पद कमल अमल अनुरागु॥177॥

मूल

गए बिभीषन पास पुनि कहेउ पुत्र बर मागु।
तेहिं मागेउ भगवन्त पद कमल अमल अनुरागु॥177॥

भावार्थ

फिर ब्रह्माजी विभीषण के पास गए और बोले- हे पुत्र! वर माँगो। उसने भगवान के चरणकमलों में निर्मल (निष्काम और अनन्य) प्रेम माँगा॥177॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

तिन्हहि देइ बर ब्रह्म सिधाए। हरषित ते अपने गृह आए॥
मय तनुजा मन्दोदरि नामा। परम सुन्दरी नारि ललामा॥1॥

मूल

तिन्हहि देइ बर ब्रह्म सिधाए। हरषित ते अपने गृह आए॥
मय तनुजा मन्दोदरि नामा। परम सुन्दरी नारि ललामा॥1॥

भावार्थ

उनको वर देकर ब्रह्माजी चले गए और वे (तीनों भाई) हर्षित हेकर अपने घर लौट आए। मय दानव की मन्दोदरी नाम की कन्या परम सुन्दरी और स्त्रियों में शिरोमणि थी॥1॥

सोइ मयँ दीन्हि रावनहि आनी। होइहि जातुधानपति जानी॥
हरषित भयउ नारि भलि पाई। पुनि दोउ बन्धु बिआहेसि जाई॥2॥

मूल

सोइ मयँ दीन्हि रावनहि आनी। होइहि जातुधानपति जानी॥
हरषित भयउ नारि भलि पाई। पुनि दोउ बन्धु बिआहेसि जाई॥2॥

भावार्थ

मय ने उसे लाकर रावण को दिया। उसने जान लिया कि यह राक्षसों का राजा होगा। अच्छी स्त्री पाकर रावण प्रसन्न हुआ और फिर उसने जाकर दोनों भाइयों का विवाह कर दिया॥2॥

गिरि त्रिकूट एक सिन्धु मझारी। बिधि निर्मित दुर्गम अति भारी॥
सोइ मय दानवँ बहुरि सँवारा। कनक रचित मनि भवन अपारा॥3॥

मूल

गिरि त्रिकूट एक सिन्धु मझारी। बिधि निर्मित दुर्गम अति भारी॥
सोइ मय दानवँ बहुरि सँवारा। कनक रचित मनि भवन अपारा॥3॥

भावार्थ

समुद्र के बीच में त्रिकूट नामक पर्वत पर ब्रह्मा का बनाया हुआ एक बडा भारी किला था। (महान मायावी और निपुण कारीगर) मय दानव ने उसको फिर से सजा दिया। उसमें मणियों से जडे हुए सोने के अनगिनत महल थे॥3॥

भोगावति जसि अहिकुल बासा। अमरावति जसि सक्रनिवासा॥
तिन्ह तें अधिक रम्य अति बङ्का। जग बिख्यात नाम तेहि लङ्का॥4॥

मूल

भोगावति जसि अहिकुल बासा। अमरावति जसि सक्रनिवासा॥
तिन्ह तें अधिक रम्य अति बङ्का। जग बिख्यात नाम तेहि लङ्का॥4॥

भावार्थ

जैसी नागकुल के रहने की (पाताल लोक में) भोगावती पुरी है और इन्द्र के रहने की (स्वर्गलोक में) अमरावती पुरी है, उनसे भी अधिक सुन्दर और बाँका वह दुर्ग था। जगत में उसका नाम लङ्का प्रसिद्ध हुआ॥4॥