175

01 दोहा

भरद्वाज सुनु जाहि जब होई बिधाता बाम।
धूरि मेरुसम जनक जम ताहि ब्यालसम दाम॥175॥

मूल

भरद्वाज सुनु जाहि जब होई बिधाता बाम।
धूरि मेरुसम जनक जम ताहि ब्यालसम दाम॥175॥

भावार्थ

(याज्ञवल्क्यजी कहते हैं-) हे भरद्वाज! सुनो, विधाता जब जिसके विपरीत होते हैं, तब उसके लिए धूल सुमेरु पर्वत के समान (भारी और कुचल डालने वाली), पिता यम के समान (कालरूप) और रस्सी साँप के समान (काट खाने वाली) हो जाती है॥175॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा। भयउ निसाचर सहित समाजा॥
दस सिर ताहि बीस भुजदण्डा। रावन नाम बीर बरिबण्डा॥1॥

मूल

काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा। भयउ निसाचर सहित समाजा॥
दस सिर ताहि बीस भुजदण्डा। रावन नाम बीर बरिबण्डा॥1॥

भावार्थ

हे मुनि! सुनो, समय पाकर वही राजा परिवार सहित रावण नामक राक्षस हुआ। उसके दस सिर और बीस भुजाएँ थीं और वह बडा ही प्रचण्ड शूरवीर था॥1॥

भूप अनुज अरिमर्दन नामा। भयउ सो कुम्भकरन बलधामा॥
सचिव जो रहा धरमरुचि जासू। भयउ बिमात्र बन्धु लघु तासू॥2॥

मूल

भूप अनुज अरिमर्दन नामा। भयउ सो कुम्भकरन बलधामा॥
सचिव जो रहा धरमरुचि जासू। भयउ बिमात्र बन्धु लघु तासू॥2॥

भावार्थ

अरिमर्दन नामक जो राजा का छोटा भाई था, वह बल का धाम कुम्भकर्ण हुआ। उसका जो मन्त्री था, जिसका नाम धर्मरुचि था, वह रावण का सौतेला छोटा भाई हुआ ॥2॥

नाम बिभीषन जेहि जग जाना। बिष्नुभगत बिग्यान निधाना॥
रहे जे सुत सेवक नृप केरे। भए निसाचर घोर घनेरे॥3॥

मूल

नाम बिभीषन जेहि जग जाना। बिष्नुभगत बिग्यान निधाना॥
रहे जे सुत सेवक नृप केरे। भए निसाचर घोर घनेरे॥3॥

भावार्थ

उसका विभीषण नाम था, जिसे सारा जगत जानता है। वह विष्णुभक्त और ज्ञान-विज्ञान का भण्डार था और जो राजा के पुत्र और सेवक थे, वे सभी बडे भयानक राक्षस हुए॥3॥

कामरूप खल जिनस अनेका। कुटिल भयङ्कर बिगत बिबेका॥
कृपा रहित हिंसक सब पापी। बरनि न जाहिं बिस्व परितापी॥4॥

मूल

कामरूप खल जिनस अनेका। कुटिल भयङ्कर बिगत बिबेका॥
कृपा रहित हिंसक सब पापी। बरनि न जाहिं बिस्व परितापी॥4॥

भावार्थ

वे सब अनेकों जाति के, मनमाना रूप धारण करने वाले, दुष्ट, कुटिल, भयङ्कर, विवेकरहित, निर्दयी, हिंसक, पापी और संसार भर को दुःख देने वाले हुए, उनका वर्णन नहीं हो सकता॥4॥