01 दोहा
कपट बोरि बानी मृदल बोलेउ जुगुति समेत।
नाम हमार भिखारि अब निर्धन रहित निकेत॥160॥
मूल
कपट बोरि बानी मृदल बोलेउ जुगुति समेत।
नाम हमार भिखारि अब निर्धन रहित निकेत॥160॥
भावार्थ
वह कपट में डुबोकर बडी युक्ति के साथ कोमल वाणी बोला- अब हमारा नाम भिखारी है, क्योङ्कि हम निर्धन और अनिकेत (घर-द्वारहीन) हैं॥160॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
कह नृप जे बिग्यान निधाना। तुम्ह सारिखे गलित अभिमाना॥
सदा रहहिं अपनपौ दुराएँ। सब बिधि कुसल कुबेष बनाएँ॥1॥
मूल
कह नृप जे बिग्यान निधाना। तुम्ह सारिखे गलित अभिमाना॥
सदा रहहिं अपनपौ दुराएँ। सब बिधि कुसल कुबेष बनाएँ॥1॥
भावार्थ
राजा ने कहा- जो आपके सदृश विज्ञान के निधान और सर्वथा अभिमानरहित होते हैं, वे अपने स्वरूप को सदा छिपाए रहते हैं, क्योङ्कि कुवेष बनाकर रहने में ही सब तरह का कल्याण है (प्रकट सन्त वेश में मान होने की सम्भावना है और मान से पतन की)॥1॥
तेहि तें कहहिं सन्त श्रुति टेरें। परम अकिञ्चन प्रिय हरि केरें॥
तुम्ह सम अधन भिखारि अगेहा। होत बिरञ्चि सिवहि सन्देहा॥2॥
मूल
तेहि तें कहहिं सन्त श्रुति टेरें। परम अकिञ्चन प्रिय हरि केरें॥
तुम्ह सम अधन भिखारि अगेहा। होत बिरञ्चि सिवहि सन्देहा॥2॥
भावार्थ
इसी से तो सन्त और वेद पुकारकर कहते हैं कि परम अकिञ्चन (सर्वथा अहङ्कार, ममता और मानरहित) ही भगवान को प्रिय होते हैं। आप सरीखे निर्धन, भिखारी और गृहहीनों को देखकर ब्रह्मा और शिवजी को भी सन्देह हो जाता है (कि वे वास्तविक सन्त हैं या भिखारी)॥2॥
जोसि सोसि तव चरन नमामी। मो पर कृपा करिअ अब स्वामी॥
सहज प्रीति भूपति कै देखी। आपु बिषय बिस्वास बिसेषी॥3॥
मूल
जोसि सोसि तव चरन नमामी। मो पर कृपा करिअ अब स्वामी॥
सहज प्रीति भूपति कै देखी। आपु बिषय बिस्वास बिसेषी॥3॥
भावार्थ
आप जो हों सो हों (अर्थात् जो कोई भी हों), मैं आपके चरणों में नमस्कार करता हूँ। हे स्वामी! अब मुझ पर कृपा कीजिए। अपने ऊपर राजा की स्वाभाविक प्रीति और अपने विषय में उसका अधिक विश्वास देखकर॥2॥
सब प्रकार राजहि अपनाई। बोलेउ अधिक सनेह जनाई॥
सुनु सतिभाउ कहउँ महिपाला। इहाँ बसत बीते बहु काला॥4॥
मूल
सब प्रकार राजहि अपनाई। बोलेउ अधिक सनेह जनाई॥
सुनु सतिभाउ कहउँ महिपाला। इहाँ बसत बीते बहु काला॥4॥
भावार्थ
सब प्रकार से राजा को अपने वश में करके, अधिक स्नेह दिखाता हुआ वह (कपट-तपस्वी) बोला- हे राजन्! सुनो, मैं तुमसे सत्य कहता हूँ, मुझे यहाँ रहते बहुत समय बीत गया॥4॥