01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
नील महीधर सिखर सम देखि बिसाल बराहु।
चपरि चलेउ हय सुटुकि नृप हाँकि न होइ निबाहु॥156॥
मूल
नील महीधर सिखर सम देखि बिसाल बराहु।
चपरि चलेउ हय सुटुकि नृप हाँकि न होइ निबाहु॥156॥
भावार्थ
नील पर्वत के शिखर के समान विशाल (शरीर वाले) उस सूअर को देखकर राजा घोडे को चाबुक लगाकर तेजी से चला और उसने सूअर को ललकारा कि अब तेरा बचाव नहीं हो सकता॥156॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
आवत देखि अधिक रव बाजी। चलेउ बराह मरुत गति भाजी॥
तुरत कीन्ह नृप सर सन्धाना। महि मिलि गयउ बिलोकत बाना॥1॥
मूल
आवत देखि अधिक रव बाजी। चलेउ बराह मरुत गति भाजी॥
तुरत कीन्ह नृप सर सन्धाना। महि मिलि गयउ बिलोकत बाना॥1॥
भावार्थ
अधिक शब्द करते हुए घोडे को (अपनी तरफ) आता देखकर सूअर पवन वेग से भाग चला। राजा ने तुरन्त ही बाण को धनुष पर चढाया। सूअर बाण को देखते ही धरती में दुबक गया॥1॥
तकि तकि तीर महीस चलावा। करि छल सुअर सरीर बचावा॥
प्रगटत दुरत जाइ मृग भागा। रिस बस भूप चलेउ सँग लागा॥2॥
मूल
तकि तकि तीर महीस चलावा। करि छल सुअर सरीर बचावा॥
प्रगटत दुरत जाइ मृग भागा। रिस बस भूप चलेउ सँग लागा॥2॥
भावार्थ
राजा तक-तककर तीर चलाता है, परन्तु सूअर छल करके शरीर को बचाता जाता है। वह पशु कभी प्रकट होता और कभी छिपता हुआ भाग जाता था और राजा भी क्रोध के वश उसके साथ (पीछे) लगा चला जाता था॥2॥
गयउ दूरि घन गहन बराहू। जहँ नाहिन गज बाजि निबाहू॥
अति अकेल बन बिपुल कलेसू। तदपि न मृग मग तजइ नरेसू॥3॥
मूल
गयउ दूरि घन गहन बराहू। जहँ नाहिन गज बाजि निबाहू॥
अति अकेल बन बिपुल कलेसू। तदपि न मृग मग तजइ नरेसू॥3॥
भावार्थ
सूअर बहुत दूर ऐसे घने जङ्गल में चला गया, जहाँ हाथी-घोडे का निबाह (गमन) नहीं था। राजा बिलकुल अकेला था और वन में क्लेश भी बहुत था, फिर भी राजा ने उस पशु का पीछा नहीं छोडा॥3॥
कोल बिलोकि भूप बड धीरा। भागि पैठ गिरिगुहाँ गभीरा॥
अगम देखि नृप अति पछिताई। फिरेउ महाबन परेउ भुलाई॥4॥
मूल
कोल बिलोकि भूप बड धीरा। भागि पैठ गिरिगुहाँ गभीरा॥
अगम देखि नृप अति पछिताई। फिरेउ महाबन परेउ भुलाई॥4॥
भावार्थ
राजा को बडा धैर्यवान देखकर, सूअर भागकर पहाड की एक गहरी गुफा में जा घुसा। उसमें जाना कठिन देखकर राजा को बहुत पछताकर लौटना पडा, पर उस घोर वन में वह रास्ता भूल गया॥4॥