01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
जब प्रतापरबि भयउ नृप फिरी दोहाई देस।
प्रजा पाल अति बेदबिधि कतहुँ नहीं अघ लेस॥153॥
मूल
जब प्रतापरबि भयउ नृप फिरी दोहाई देस।
प्रजा पाल अति बेदबिधि कतहुँ नहीं अघ लेस॥153॥
भावार्थ
जब प्रतापभानु राजा हुआ, देश में उसकी दुहाई फिर गई। वह वेद में बताई हुई विधि के अनुसार उत्तम रीति से प्रजा का पालन करने लगा। उसके राज्य में पाप का कहीं लेश भी नहीं रह गया॥153॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
नृप हितकारक सचिव सयाना। नाम धरमरुचि सुक्र समाना॥
सचिव सयान बन्धु बलबीरा। आपु प्रतापपुञ्ज रनधीरा॥1॥
मूल
नृप हितकारक सचिव सयाना। नाम धरमरुचि सुक्र समाना॥
सचिव सयान बन्धु बलबीरा। आपु प्रतापपुञ्ज रनधीरा॥1॥
भावार्थ
राजा का हित करने वाला और शुक्राचार्य के समान बुद्धिमान धर्मरुचि नामक उसका मन्त्री था। इस प्रकार बुद्धिमान मन्त्री और बलवान तथा वीर भाई के साथ ही स्वयं राजा भी बडा प्रतापी और रणधीर था॥1॥
सेन सङ्ग चतुरङ्ग अपारा। अमित सुभट सब समर जुझारा॥
सेन बिलोकि राउ हरषाना। अरु बाजे गहगहे निसाना॥2॥
मूल
सेन सङ्ग चतुरङ्ग अपारा। अमित सुभट सब समर जुझारा॥
सेन बिलोकि राउ हरषाना। अरु बाजे गहगहे निसाना॥2॥
भावार्थ
साथ में अपार चतुरङ्गिणी सेना थी, जिसमें असङ्ख्य योद्धा थे, जो सब के सब रण में जूझ मरने वाले थे। अपनी सेना को देखकर राजा बहुत प्रसन्न हुआ और घमाघम नगाडे बजने लगे॥2॥
बिजय हेतु कटकई बनाई। सुदिन साधि नृप चलेउ बजाई॥
जहँ तहँ परीं अनेक लराईं। जीते सकल भूप बरिआईं॥3॥
मूल
बिजय हेतु कटकई बनाई। सुदिन साधि नृप चलेउ बजाई॥
जहँ तहँ परीं अनेक लराईं। जीते सकल भूप बरिआईं॥3॥
भावार्थ
दिग्विजय के लिए सेना सजाकर वह राजा शुभ दिन (मुहूर्त) साधकर और डङ्का बजाकर चला। जहाँ-तहाँ बहुतसी लडाइयाँ हुईं। उसने सब राजाओं को बलपूर्वक जीत लिया॥3॥
सप्त दीप भुजबल बस कीन्हे। लै लै दण्ड छाडि नृप दीन्हे॥
सकल अवनि मण्डल तेहि काला। एक प्रतापभानु महिपाला॥4॥
मूल
सप्त दीप भुजबल बस कीन्हे। लै लै दण्ड छाडि नृप दीन्हे॥
सकल अवनि मण्डल तेहि काला। एक प्रतापभानु महिपाला॥4॥
भावार्थ
अपनी भुजाओं के बल से उसने सातों द्वीपों (भूमिखण्डों) को वश में कर लिया और राजाओं से दण्ड (कर) ले-लेकर उन्हें छोड दिया। सम्पूर्ण पृथ्वी मण्डल का उस समय प्रतापभानु ही एकमात्र (चक्रवर्ती) राजा था॥4॥