01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
यह इतिहास पुनीत अति उमहि कही बृषकेतु।
भरद्वाज सुनु अपर पुनि राम जनम कर हेतु॥152॥
मूल
यह इतिहास पुनीत अति उमहि कही बृषकेतु।
भरद्वाज सुनु अपर पुनि राम जनम कर हेतु॥152॥
भावार्थ
(याज्ञवल्क्यजी कहते हैं-) हे भरद्वाज! इस अत्यन्त पवित्र इतिहास को शिवजी ने पार्वती से कहा था। अब श्रीराम के अवतार लेने का दूसरा कारण सुनो॥152॥
मासपारायण, पाँचवाँ विश्राम
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुनु मुनि कथा पुनीत पुरानी। जो गिरिजा प्रति सम्भु बखानी॥
बिस्व बिदित एक कैकय देसू। सत्यकेतु तहँ बसइ नरेसू॥1॥
मूल
सुनु मुनि कथा पुनीत पुरानी। जो गिरिजा प्रति सम्भु बखानी॥
बिस्व बिदित एक कैकय देसू। सत्यकेतु तहँ बसइ नरेसू॥1॥
भावार्थ
हे मुनि! वह पवित्र और प्राचीन कथा सुनो, जो शिवजी ने पार्वती से कही थी। संसार में प्रसिद्ध एक कैकय देश है। वहाँ सत्यकेतु नाम का राजा रहता (राज्य करता) था॥1॥
धरम धुरन्धर नीति निधाना। तेज प्रताप सील बलवाना॥
तेहि कें भए जुगल सुत बीरा। सब गुन धाम महा रनधीरा॥2॥
मूल
धरम धुरन्धर नीति निधाना। तेज प्रताप सील बलवाना॥
तेहि कें भए जुगल सुत बीरा। सब गुन धाम महा रनधीरा॥2॥
भावार्थ
वह धर्म की धुरी को धारण करने वाला, नीति की खान, तेजस्वी, प्रतापी, सुशील और बलवान था, उसके दो वीर पुत्र हुए, जो सब गुणों के भण्डार और बडे ही रणधीर थे॥2॥
राज धनी जो जेठ सुत आही। नाम प्रतापभानु अस ताही॥
अपर सुतहि अरिमर्दन नामा। भुजबल अतुल अचल सङ्ग्रामा॥3॥
मूल
राज धनी जो जेठ सुत आही। नाम प्रतापभानु अस ताही॥
अपर सुतहि अरिमर्दन नामा। भुजबल अतुल अचल सङ्ग्रामा॥3॥
भावार्थ
राज्य का उत्तराधिकारी जो बडा लडका था, उसका नाम प्रतापभानु था। दूसरे पुत्र का नाम अरिमर्दन था, जिसकी भुजाओं में अपार बल था और जो युद्ध में (पर्वत के समान) अटल रहता था॥3॥
भाइहि भाइहि परम समीती। सकल दोष छल बरजित प्रीती॥
जेठे सुतहि राज नृप दीन्हा। हरि हित आपु गवन बन कीन्हा॥4॥
मूल
भाइहि भाइहि परम समीती। सकल दोष छल बरजित प्रीती॥
जेठे सुतहि राज नृप दीन्हा। हरि हित आपु गवन बन कीन्हा॥4॥
भावार्थ
भाई-भाई में बडा मेल और सब प्रकार के दोषों और छलों से रहित (सच्ची) प्रीति थी। राजा ने जेठे पुत्र को राज्य दे दिया और आप भगवान (के भजन) के लिए वन को चल दिए॥4॥