146

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

नील सरोरुह नील मनि नील नीरधर स्याम।
लाजहिं तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम॥146॥

मूल

नील सरोरुह नील मनि नील नीरधर स्याम।
लाजहिं तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम॥146॥

भावार्थ

भगवान के नीले कमल, नीलमणि और नीले (जलयुक्त) मेघ के समान (कोमल, प्रकाशमय और सरस) श्यामवर्ण (चिन्मय) शरीर की शोभा देखकर करोडों कामदेव भी लजा जाते हैं॥146॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

सरद मयङ्क बदन छबि सींवा। चारु कपोल चिबुक दर ग्रीवा॥
अधर अरुन रद सुन्दर नासा। बिधु कर निकर बिनिन्दक हासा॥1॥

मूल

सरद मयङ्क बदन छबि सींवा। चारु कपोल चिबुक दर ग्रीवा॥
अधर अरुन रद सुन्दर नासा। बिधु कर निकर बिनिन्दक हासा॥1॥

भावार्थ

उनका मुख शरद (पूर्णिमा) के चन्द्रमा के समान छबि की सीमास्वरूप था। गाल और ठोडी बहुत सुन्दर थे, गला शङ्ख के समान (त्रिरेखायुक्त, चढाव-उतार वाला) था। लाल होठ, दाँत और नाक अत्यन्त सुन्दर थे। हँसी चन्द्रमा की किरणावली को नीचा दिखाने वाली थी॥1॥

नव अम्बुज अम्बक छबि नीकी। चितवनि ललित भावँतीजी की॥
भृकुटि मनोज चाप छबि हारी। तिलक ललाट पटल दुतिकारी॥2॥

मूल

नव अम्बुज अम्बक छबि नीकी। चितवनि ललित भावँतीजी की॥
भृकुटि मनोज चाप छबि हारी। तिलक ललाट पटल दुतिकारी॥2॥

भावार्थ

नेत्रों की छवि नए (खिले हुए) कमल के समान बडी सुन्दर थी। मनोहर चितवन जी को बहुत प्यारी लगती थी। टेढी भौंहें कामदेव के धनुष की शोभा को हरने वाली थीं। ललाट पटल पर प्रकाशमय तिलक था॥2॥

कुण्डल मकर मुकुट सिर भ्राजा। कुटिल केस जनु मधुप समाजा॥
उर श्रीबत्स रुचिर बनमाला। पदिक हार भूषन मनिजाला॥3॥

मूल

कुण्डल मकर मुकुट सिर भ्राजा। कुटिल केस जनु मधुप समाजा॥
उर श्रीबत्स रुचिर बनमाला। पदिक हार भूषन मनिजाला॥3॥

भावार्थ

कानों में मकराकृत (मछली के आकार के) कुण्डल और सिर पर मुकुट सुशोभित था। टेढे (घुँघराले) काले बाल ऐसे सघन थे, मानो भौंरों के झुण्ड हों। हृदय पर श्रीवत्स, सुन्दर वनमाला, रत्नजडित हार और मणियों के आभूषण सुशोभित थे॥3॥

केहरि कन्धर चारु जनेऊ। बाहु बिभूषन सुन्दर तेऊ॥
मकरि कर सरिस सुभग भुजदण्डा। कटि निषङ्ग कर सर कोदण्डा॥4॥

मूल

केहरि कन्धर चारु जनेऊ। बाहु बिभूषन सुन्दर तेऊ॥
मकरि कर सरिस सुभग भुजदण्डा। कटि निषङ्ग कर सर कोदण्डा॥4॥

भावार्थ

सिंह की सी गर्दन थी, सुन्दर जनेऊ था। भुजाओं में जो गहने थे, वे भी सुन्दर थे। हाथी की सूँड के समान (उतार-चढाव वाले) सुन्दर भुजदण्ड थे। कमर में तरकस और हाथ में बाण और धनुष (शोभा पा रहे) थे॥4॥