139

01 दोहा

एक कलप एहि हेतु प्रभु लीन्ह मनुज अवतार।
सुर रञ्जन सज्जन सुखद हरि भञ्जन भुमि भार॥139॥

मूल

एक कलप एहि हेतु प्रभु लीन्ह मनुज अवतार।
सुर रञ्जन सज्जन सुखद हरि भञ्जन भुमि भार॥139॥

भावार्थ

देवताओं को प्रसन्न करने वाले, सज्जनों को सुख देने वाले और पृथ्वी का भार हरण करने वाले भगवान ने एक कल्प में इसी कारण मनुष्य का अवतार लिया था॥139॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

एहि बिधि जनम करम हरि केरे। सुन्दर सुखद बिचित्र घनेरे॥
कलप कलप प्रति प्रभु अवतरहीं। चारु चरित नानाबिधि करहीं॥1॥

मूल

एहि बिधि जनम करम हरि केरे। सुन्दर सुखद बिचित्र घनेरे॥
कलप कलप प्रति प्रभु अवतरहीं। चारु चरित नानाबिधि करहीं॥1॥

भावार्थ

इस प्रकार भगवान के अनेक सुन्दर, सुखदायक और अलौकिक जन्म और कर्म हैं। प्रत्येक कल्प में जब-जब भगवान अवतार लेते हैं और नाना प्रकार की सुन्दर लीलाएँ करते हैं,॥1॥

तब-तब कथा मुनीसन्ह गाई। परम पुनीत प्रबन्ध बनाई॥
बिबिध प्रसङ्ग अनूप बखाने। करहिं न सुनि आचरजु सयाने॥2॥

मूल

तब-तब कथा मुनीसन्ह गाई। परम पुनीत प्रबन्ध बनाई॥
बिबिध प्रसङ्ग अनूप बखाने। करहिं न सुनि आचरजु सयाने॥2॥

भावार्थ

तब-तब मुनीश्वरों ने परम पवित्र काव्य रचना करके उनकी कथाओं का गान किया है और भाँति-भाँति के अनुपम प्रसङ्गों का वर्णन किया है, जिनको सुनकर समझदार (विवेकी) लोग आश्चर्य नहीं करते॥2॥

हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब सन्ता॥
रामचन्द्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥3॥

मूल

हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब सन्ता॥
रामचन्द्र के चरित सुहाए। कलप कोटि लगि जाहिं न गाए॥3॥

भावार्थ

श्री हरि अनन्त हैं (उनका कोई पार नहीं पा सकता) और उनकी कथा भी अनन्त है। सब सन्त लोग उसे बहुत प्रकार से कहते-सुनते हैं। श्री रामचन्द्रजी के सुन्दर चरित्र करोडों कल्पों में भी गाए नहीं जा सकते॥3॥

यह प्रसङ्ग मैं कहा भवानी। हरिमायाँ मोहहिं मुनि ग्यानी॥
प्रभु कौतुकी प्रनत हितकारी। सेवत सुलभ सकल दुखहारी॥4॥

मूल

यह प्रसङ्ग मैं कहा भवानी। हरिमायाँ मोहहिं मुनि ग्यानी॥
प्रभु कौतुकी प्रनत हितकारी। सेवत सुलभ सकल दुखहारी॥4॥

भावार्थ

(शिवजी कहते हैं कि) हे पार्वती! मैन्ने यह बताने के लिए इस प्रसङ्ग को कहा कि ज्ञानी मुनि भी भगवान की माया से मोहित हो जाते हैं। प्रभु कौतुकी (लीलामय) हैं और शरणागत का हित करने वाले हैं। वे सेवा करने में बहुत सुलभ और सब दुःखों के हरने वाले हैं॥4॥