01 दोहा
असुर सुरा बिष सङ्करहि आपु रमा मनि चारु।
स्वारथ साधक कुटिल तुम्ह सदा कपट ब्यवहारु॥136॥
मूल
असुर सुरा बिष सङ्करहि आपु रमा मनि चारु।
स्वारथ साधक कुटिल तुम्ह सदा कपट ब्यवहारु॥136॥
भावार्थ
असुरों को मदिरा और शिवजी को विष देकर तुमने स्वयं लक्ष्मी और सुन्दर (कौस्तुभ) मणि ले ली। तुम बडे धोखेबाज और मतलबी हो। सदा कपट का व्यवहार करते हो॥136॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
परम स्वतन्त्र न सिर पर कोई। भावइ मनहि करहु तुम्ह सोई॥
भलेहि मन्द मन्देहि भल करहू। बिसमय हरष न हियँ कछु धरहू॥1॥
मूल
परम स्वतन्त्र न सिर पर कोई। भावइ मनहि करहु तुम्ह सोई॥
भलेहि मन्द मन्देहि भल करहू। बिसमय हरष न हियँ कछु धरहू॥1॥
भावार्थ
तुम परम स्वतन्त्र हो, सिर पर तो कोई है नहीं, इससे जब जो मन को भाता है, (स्वच्छन्दता से) वही करते हो। भले को बुरा और बुरे को भला कर देते हो। हृदय में हर्ष-विषाद कुछ भी नहीं लाते॥1॥
डहकि डहकि परिचेहु सब काहू। अति असङ्क मन सदा उछाहू॥
करम सुभासुभ तुम्हहि न बाधा। अब लगि तुम्हहि न काहूँ साधा॥2॥
मूल
डहकि डहकि परिचेहु सब काहू। अति असङ्क मन सदा उछाहू॥
करम सुभासुभ तुम्हहि न बाधा। अब लगि तुम्हहि न काहूँ साधा॥2॥
भावार्थ
सबको ठग-ठगकर परक गए हो और अत्यन्त निडर हो गए हो, इसी से (ठगने के काम में) मन में सदा उत्साह रहता है। शुभ-अशुभ कर्म तुम्हें बाधा नहीं देते। अब तक तुम को किसी ने ठीक नहीं किया था॥2॥
भले भवन अब बायन दीन्हा। पावहुगे फल आपन कीन्हा॥
बञ्चेहु मोहि जवनि धरि देहा। सोइ तनु धरहु श्राप मम एहा॥3॥
मूल
भले भवन अब बायन दीन्हा। पावहुगे फल आपन कीन्हा॥
बञ्चेहु मोहि जवनि धरि देहा। सोइ तनु धरहु श्राप मम एहा॥3॥
भावार्थ
अबकी तुमने अच्छे घर बैना दिया है (मेरे जैसे जबर्दस्त आदमी से छेडखानी की है।) अतः अपने किए का फल अवश्य पाओगे। जिस शरीर को धारण करके तुमने मुझे ठगा है, तुम भी वही शरीर धारण करो, यह मेरा शाप है॥3॥
कपि आकृति तुम्ह कीन्हि हमारी। करिहहिं कीस सहाय तुम्हारी॥
मम अपकार कीन्ह तुम्ह भारी। नारि बिरहँ तुम्ह होब दुखारी॥4॥
मूल
कपि आकृति तुम्ह कीन्हि हमारी। करिहहिं कीस सहाय तुम्हारी॥
मम अपकार कीन्ह तुम्ह भारी। नारि बिरहँ तुम्ह होब दुखारी॥4॥
भावार्थ
तुमने हमारा रूप बन्दर का सा बना दिया था, इससे बन्दर ही तुम्हारी सहायता करेङ्गे। (मैं जिस स्त्री को चाहता था, उससे मेरा वियोग कराकर) तुमने मेरा बडा अहित किया है, इससे तुम भी स्त्री के वियोग में दुःखी होङ्गे॥4॥