122

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

भए निसाचर जाइ तेइ महाबीर बलवान।
कुम्भकरन रावन सुभट सुर बिजई जग जान॥122॥

मूल

भए निसाचर जाइ तेइ महाबीर बलवान।
कुम्भकरन रावन सुभट सुर बिजई जग जान॥122॥

भावार्थ

वे ही (दोनों) जाकर देवताओं को जीतने वाले तथा बडे योद्धा, रावण और कुम्भकर्ण नामक बडे बलवान और महावीर राक्षस हुए, जिन्हें सारा जगत जानता है॥122॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

मुकुत न भए हते भगवाना। तीनि जनम द्विज बचन प्रवाना॥
एक बार तिन्ह के हित लागी। धरेउ सरीर भगत अनुरागी॥1॥

मूल

मुकुत न भए हते भगवाना। तीनि जनम द्विज बचन प्रवाना॥
एक बार तिन्ह के हित लागी। धरेउ सरीर भगत अनुरागी॥1॥

भावार्थ

भगवान के द्वारा मारे जाने पर भी वे (हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु) इसीलिए मुक्त नहीं हुए कि ब्राह्मण के वचन (शाप) का प्रमाण तीन जन्म के लिए था। अतः एक बार उनके कल्याण के लिए भक्तप्रेमी भगवान ने फिर अवतार लिया॥1॥

कस्यप अदिति तहाँ पितु माता। दसरथ कौसल्या बिख्याता॥
एक कलप एहि बिधि अवतारा। चरित पवित्र किए संसारा॥2॥

मूल

कस्यप अदिति तहाँ पितु माता। दसरथ कौसल्या बिख्याता॥
एक कलप एहि बिधि अवतारा। चरित पवित्र किए संसारा॥2॥

भावार्थ

वहाँ (उस अवतार में) कश्यप और अदिति उनके माता-पिता हुए, जो दशरथ और कौसल्या के नाम से प्रसिद्ध थे। एक कल्प में इस प्रकार अवतार लेकर उन्होन्ने संसार में पवित्र लीलाएँ कीं॥2॥

एक कलप सुर देखि दुखारे। समर जलन्धर सन सब हारे॥
सम्भु कीन्ह सङ्ग्राम अपारा। दनुज महाबल मरइ न मारा॥3॥

मूल

एक कलप सुर देखि दुखारे। समर जलन्धर सन सब हारे॥
सम्भु कीन्ह सङ्ग्राम अपारा। दनुज महाबल मरइ न मारा॥3॥

भावार्थ

एक कल्प में सब देवताओं को जलन्धर दैत्य से युद्ध में हार जाने के कारण दुःखी देखकर शिवजी ने उसके साथ बडा घोर युद्ध किया, पर वह महाबली दैत्य मारे नहीं मरता था॥3॥

परम सती असुराधिप नारी। तेहिं बल ताहि न जितहिं पुरारी॥4॥

मूल

परम सती असुराधिप नारी। तेहिं बल ताहि न जितहिं पुरारी॥4॥

भावार्थ

उस दैत्यराज की स्त्री परम सती (बडी ही पतिव्रता) थी। उसी के प्रताप से त्रिपुरासुर (जैसे अजेय शत्रु) का विनाश करने वाले शिवजी भी उस दैत्य को नहीं जीत सके॥4॥