01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
जगदम्बा जहँ अवतरी सो पुरु बरनि कि जाइ।
रिद्धि सिद्धि सम्पत्ति सुख नित नूतन अधिकाइ॥94॥
मूल
जगदम्बा जहँ अवतरी सो पुरु बरनि कि जाइ।
रिद्धि सिद्धि सम्पत्ति सुख नित नूतन अधिकाइ॥94॥
भावार्थ
जिस नगर में स्वयं जगदम्बा ने अवतार लिया, क्या उसका वर्णन हो सकता है? वहाँ ऋद्धि, सिद्धि, सम्पत्ति और सुख नित-नए बढते जाते हैं॥94॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
नगर निकट बरात सुनि आई। पुर खरभरु सोभा अधिकाई॥
करि बनाव सजि बाहन नाना। चले लेन सादर अगवाना॥1॥
मूल
नगर निकट बरात सुनि आई। पुर खरभरु सोभा अधिकाई॥
करि बनाव सजि बाहन नाना। चले लेन सादर अगवाना॥1॥
भावार्थ
बारात को नगर के निकट आई सुनकर नगर में चहल-पहल मच गई, जिससे उसकी शोभा बढ गई। अगवानी करने वाले लोग बनाव-श्रृङ्गार करके तथा नाना प्रकार की सवारियों को सजाकर आदर सहित बारात को लेने चले॥1॥
हियँ हरषे सुर सेन निहारी। हरिहि देखि अति भए सुखारी॥
सिव समाज जब देखन लागे। बिडरि चले बाहन सब भागे॥2॥
मूल
हियँ हरषे सुर सेन निहारी। हरिहि देखि अति भए सुखारी॥
सिव समाज जब देखन लागे। बिडरि चले बाहन सब भागे॥2॥
भावार्थ
देवताओं के समाज को देखकर सब मन में प्रसन्न हुए और विष्णु भगवान को देखकर तो बहुत ही सुखी हुए, किन्तु जब शिवजी के दल को देखने लगे तब तो उनके सब वाहन (सवारियों के हाथी, घोडे, रथ के बैल आदि) डरकर भाग चले॥2॥
धरि धीरजु तहँ रहे सयाने। बालक सब लै जीव पराने॥
गएँ भवन पूछहिं पितु माता। कहहिं बचन भय कम्पित गाता॥3॥
मूल
धरि धीरजु तहँ रहे सयाने। बालक सब लै जीव पराने॥
गएँ भवन पूछहिं पितु माता। कहहिं बचन भय कम्पित गाता॥3॥
भावार्थ
कुछ बडी उम्र के समझदार लोग धीरज धरकर वहाँ डटे रहे। लडके तो सब अपने प्राण लेकर भागे। घर पहुँचने पर जब माता-पिता पूछते हैं, तब वे भय से काँपते हुए शरीर से ऐसा वचन कहते हैं॥3॥
कहिअ काह कहि जाइ न बाता। जम कर धार किधौं बरिआता॥
बरु बौराह बसहँ असवारा। ब्याल कपाल बिभूषन छारा॥4॥
मूल
कहिअ काह कहि जाइ न बाता। जम कर धार किधौं बरिआता॥
बरु बौराह बसहँ असवारा। ब्याल कपाल बिभूषन छारा॥4॥
भावार्थ
क्या कहें, कोई बात कही नहीं जाती। यह बारात है या यमराज की सेना? दूल्हा पागल है और बैल पर सवार है। साँप, कपाल और राख ही उसके गहने हैं॥4॥
03 छन्द
विश्वास-प्रस्तुतिः
तन छार ब्याल कपाल भूषन नगन जटिल भयङ्करा।
सँग भूत प्रेत पिसाच जोगिनि बिकट मुख रजनीचरा॥
जो जिअत रहिहि बरात देखत पुन्य बड तेहि कर सही।
देखिहि सो उमा बिबाहु घर घर बात असि लरिकन्ह कही॥
मूल
तन छार ब्याल कपाल भूषन नगन जटिल भयङ्करा।
सँग भूत प्रेत पिसाच जोगिनि बिकट मुख रजनीचरा॥
जो जिअत रहिहि बरात देखत पुन्य बड तेहि कर सही।
देखिहि सो उमा बिबाहु घर घर बात असि लरिकन्ह कही॥
भावार्थ
दूल्हे के शरीर पर राख लगी है, साँप और कपाल के गहने हैं, वह नङ्गा, जटाधारी और भयङ्कर है।
उसके साथ भयानक मुखवाले भूत, प्रेत, पिशाच, योगिनियाँ और राक्षस हैं, जो बारात को देखकर जीता बचेगा, सचमुच उसके बडे ही पुण्य हैं और वही पार्वती का विवाह देखेगा। लडकों ने घर-घर यही बात कही।