01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
सकल कला करि कोटि बिधि हारेउ सेन समेत।
चली न अचल समाधि सिव कोपेउ हृदयनिकेत॥86॥
मूल
सकल कला करि कोटि बिधि हारेउ सेन समेत।
चली न अचल समाधि सिव कोपेउ हृदयनिकेत॥86॥
भावार्थ
कामदेव अपनी सेना समेत करोडों प्रकार की सब कलाएँ (उपाए) करके हार गया, पर शिवजी की अचल समाधि न डिगी। तब कामदेव क्रोधित हो उठा॥86॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
देखि रसाल बिटप बर साखा। तेहि पर चढेउ मदनु मन माखा॥
सुमन चाप निज सर सन्धाने। अति रिस ताकि श्रवन लगि ताने॥1॥
मूल
देखि रसाल बिटप बर साखा। तेहि पर चढेउ मदनु मन माखा॥
सुमन चाप निज सर सन्धाने। अति रिस ताकि श्रवन लगि ताने॥1॥
भावार्थ
आम के वृक्ष की एक सुन्दर डाली देखकर मन में क्रोध से भरा हुआ कामदेव उस पर चढ गया। उसने पुष्प धनुष पर अपने (पाँचों) बाण चढाए और अत्यन्त क्रोध से (लक्ष्य की ओर) ताककर उन्हें कान तक तान लिया॥1॥
छाडे बिषम बिसिख उर लागे। छूटि समाधि सम्भु तब जागे॥
भयउ ईस मन छोभु बिसेषी। नयन उघारि सकल दिसि देखी॥2॥
मूल
छाडे बिषम बिसिख उर लागे। छूटि समाधि सम्भु तब जागे॥
भयउ ईस मन छोभु बिसेषी। नयन उघारि सकल दिसि देखी॥2॥
भावार्थ
कामदेव ने तीक्ष्ण पाँच बाण छोडे, जो शिवजी के हृदय में लगे। तब उनकी समाधि टूट गई और वे जाग गए। ईश्वर (शिवजी) के मन में बहुत क्षोभ हुआ। उन्होन्ने आँखें खोलकर सब ओर देखा॥2॥
सौरभ पल्लव मदनु बिलोका। भयउ कोपु कम्पेउ त्रैलोका॥
तब सिवँ तीसर नयन उघारा। चितवन कामु भयउ जरि छारा॥3॥
मूल
सौरभ पल्लव मदनु बिलोका। भयउ कोपु कम्पेउ त्रैलोका॥
तब सिवँ तीसर नयन उघारा। चितवन कामु भयउ जरि छारा॥3॥
भावार्थ
जब आम के पत्तों में (छिपे हुए) कामदेव को देखा तो उन्हें बडा क्रोध हुआ, जिससे तीनों लोक काँप उठे। तब शिवजी ने तीसरा नेत्र खोला, उनको देखते ही कामदेव जलकर भस्म हो गया॥3॥
हाहाकार भयउ जग भारी। डरपे सुर भए असुर सुखारी॥
समुझि कामसुख सोचहिं भोगी। भए अकण्टक साधक जोगी॥4॥
मूल
हाहाकार भयउ जग भारी। डरपे सुर भए असुर सुखारी॥
समुझि कामसुख सोचहिं भोगी। भए अकण्टक साधक जोगी॥4॥
भावार्थ
जगत में बडा हाहाकर मच गया। देवता डर गए, दैत्य सुखी हुए। भोगी लोग कामसुख को याद करके चिन्ता करने लगे और साधक योगी निष्कण्टक हो गए॥4॥
03 छन्द
विश्वास-प्रस्तुतिः
जोगी अकण्टक भए पति गति सुनत रति मुरुछित भई।
रोदति बदति बहु भाँति करुना करति सङ्कर पहिं गई॥
अति प्रेम करि बिनती बिबिध बिधि जोरि कर सन्मुख रही।
प्रभु आसुतोष कृपाल सिव अबला निरखि बोले सही॥
मूल
जोगी अकण्टक भए पति गति सुनत रति मुरुछित भई।
रोदति बदति बहु भाँति करुना करति सङ्कर पहिं गई॥
अति प्रेम करि बिनती बिबिध बिधि जोरि कर सन्मुख रही।
प्रभु आसुतोष कृपाल सिव अबला निरखि बोले सही॥
भावार्थ
योगी निष्कण्टक हो गए, कामदेव की स्त्री रति अपने पति की यह दशा सुनते ही मूर्च्छित हो गई।
रोती-चिल्लाती और भाँति-भाँति से करुणा करती हुई वह शिवजी के पास गई। अत्यन्त प्रेम के साथ अनेकों प्रकार से विनती करके हाथ जोडकर सामने खडी हो गई। शीघ्र प्रसन्न होने वाले कृपालु शिवजी अबला (असहाय स्त्री) को देखकर सुन्दर (उसको सान्त्वना देने वाले) वचन बोले।