01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
पारबती पहिं जाइ तुम्ह प्रेम परिच्छा लेहु।
गिरिहि प्रेरि पठएहु भवन दूरि करेहु सन्देहु॥77॥
मूल
पारबती पहिं जाइ तुम्ह प्रेम परिच्छा लेहु।
गिरिहि प्रेरि पठएहु भवन दूरि करेहु सन्देहु॥77॥
भावार्थ
आप लोग पार्वती के पास जाकर उनके प्रेम की परीक्षा लीजिए और हिमाचल को कहकर (उन्हें पार्वती को लिवा लाने के लिए भेजिए तथा) पार्वती को घर भिजवाइए और उनके सन्देह को दूर कीजिए॥77॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
रिषिन्ह गौरि देखी तहँ कैसी। मूरतिमन्त तपस्या जैसी॥
बोले मुनि सुनु सैलकुमारी। करहु कवन कारन तपु भारी॥1॥
मूल
रिषिन्ह गौरि देखी तहँ कैसी। मूरतिमन्त तपस्या जैसी॥
बोले मुनि सुनु सैलकुमारी। करहु कवन कारन तपु भारी॥1॥
भावार्थ
ऋषियों ने (वहाँ जाकर) पार्वती को कैसी देखा, मानो मूर्तिमान् तपस्या ही हो। मुनि बोले- हे शैलकुमारी! सुनो, तुम किसलिए इतना कठोर तप कर रही हो?॥1॥
केहि अवराधहु का तुम्ह चहहू। हम सन सत्य मरमु किन कहहू॥
कहत बचन मनु अति सकुचाई। हँसिहहु सुनि हमारि जडताई॥2॥
मूल
केहि अवराधहु का तुम्ह चहहू। हम सन सत्य मरमु किन कहहू॥
कहत बचन मनु अति सकुचाई। हँसिहहु सुनि हमारि जडताई॥2॥
भावार्थ
तुम किसकी आराधना करती हो और क्या चाहती हो? हमसे अपना सच्चा भेद क्यों नहीं कहतीं? (पार्वती ने कहा-) बात कहते मन बहुत सकुचाता है। आप लोग मेरी मूर्खता सुनकर हँसेङ्गे॥2॥
मनु हठ परा न सुनइ सिखावा। चहत बारि पर भीति उठावा॥
नारद कहा सत्य सोइ जाना। बिनु पङ्खन्ह हम चहहिं उडाना॥3॥
मूल
मनु हठ परा न सुनइ सिखावा। चहत बारि पर भीति उठावा॥
नारद कहा सत्य सोइ जाना। बिनु पङ्खन्ह हम चहहिं उडाना॥3॥
भावार्थ
मन ने हठ पकड लिया है, वह उपदेश नहीं सुनता और जल पर दीवाल उठाना चाहता है। नारदजी ने जो कह दिया उसे सत्य जानकर मैं बिना ही पाँख के उडना चाहती हूँ॥3॥
देखहु मुनि अबिबेकु हमारा। चाहिअ सदा सिवहि भरतारा॥4॥
मूल
देखहु मुनि अबिबेकु हमारा। चाहिअ सदा सिवहि भरतारा॥4॥
भावार्थ
हे मुनियों! आप मेरा अज्ञान तो देखिए कि मैं सदा शिवजी को ही पति बनाना चाहती हूँ॥4॥