072

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

सुनहि मातु मैं दीख अस सपन सुनावउँ तोहि।
सुन्दर गौर सुबिप्रबर अस उपदेसेउ मोहि॥72॥

मूल

सुनहि मातु मैं दीख अस सपन सुनावउँ तोहि।
सुन्दर गौर सुबिप्रबर अस उपदेसेउ मोहि॥72॥

भावार्थ

माँ! सुन, मैं तुझे सुनाती हूँ, मैन्ने ऐसा स्वप्न देखा है कि मुझे एक सुन्दर गौरवर्ण श्रेष्ठ ब्राह्मण ने ऐसा उपदेश दिया है-॥72॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

करहि जाइ तपु सैलकुमारी। नारद कहा सो सत्य बिचारी॥
मातु पितहि पुनि यह मत भावा। तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा॥1॥

मूल

करहि जाइ तपु सैलकुमारी। नारद कहा सो सत्य बिचारी॥
मातु पितहि पुनि यह मत भावा। तपु सुखप्रद दुख दोष नसावा॥1॥

भावार्थ

हे पार्वती! नारदजी ने जो कहा है, उसे सत्य समझकर तू जाकर तप कर। फिर यह बात तेरे माता-पिता को भी अच्छी लगी है। तप सुख देने वाला और दुःख-दोष का नाश करने वाला है॥1॥

तपबल रचइ प्रपञ्चु बिधाता। तपबल बिष्नु सकल जग त्राता॥
तपबल सम्भु करहिं सङ्घारा। तपबल सेषु धरइ महिभारा॥2॥

मूल

तपबल रचइ प्रपञ्चु बिधाता। तपबल बिष्नु सकल जग त्राता॥
तपबल सम्भु करहिं सङ्घारा। तपबल सेषु धरइ महिभारा॥2॥

भावार्थ

तप के बल से ही ब्रह्मा संसार को रचते हैं और तप के बल से ही बिष्णु सारे जगत का पालन करते हैं। तप के बल से ही शम्भु (रुद्र रूप से) जगत का संहार करते हैं और तप के बल से ही शेषजी पृथ्वी का भार धारण करते हैं॥2॥

तप अधार सब सृष्टि भवानी। करहि जाइ तपु अस जियँ जानी॥
सुनत बचन बिसमित महतारी। सपन सुनायउ गिरिहि हँकारी॥3॥

भावार्थ

हे भवानी! सारी सृष्टि तप के ही आधार पर है। ऐसा जी में जानकर तू जाकर तप कर। यह बात सुनकर माता को बडा अचरज हुआ और उसने हिमवान्‌ को बुलाकर वह स्वप्न सुनाया॥3॥

मातु पितहि बहुबिधि समुझाई। चलीं उमा तप हित हरषाई॥
प्रिय परिवार पिता अरु माता। भए बिकल मुख आव न बाता॥4॥

भावार्थ

माता-पिता को बहुत तरह से समझाकर बडे हर्ष के साथ पार्वतीजी तप करने के लिए चलीं। प्यारे कुटुम्बी, पिता और माता सब व्याकुल हो गए। किसी के मुँह से बात नहीं निकलती॥4॥