01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रिया सोचु परिहरहु सबु सुमिरहु श्रीभगवान।
पारबतिहि निरमयउ जेहिं सोइ करिहि कल्यान॥71॥
मूल
प्रिया सोचु परिहरहु सबु सुमिरहु श्रीभगवान।
पारबतिहि निरमयउ जेहिं सोइ करिहि कल्यान॥71॥
भावार्थ
हे प्रिये! सब सोच छोडकर श्री भगवान का स्मरण करो, जिन्होन्ने पार्वती को रचा है, वे ही कल्याण करेङ्गे॥71॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
अब जौं तुम्हहि सुता पर नेहू। तौ अस जाइ सिखावनु देहू॥
करै सो तपु जेहिं मिलहिं महेसू। आन उपायँ न मिटिहि कलेसू॥1॥
मूल
अब जौं तुम्हहि सुता पर नेहू। तौ अस जाइ सिखावनु देहू॥
करै सो तपु जेहिं मिलहिं महेसू। आन उपायँ न मिटिहि कलेसू॥1॥
भावार्थ
अब यदि तुम्हें कन्या पर प्रेम है, तो जाकर उसे यह शिक्षा दो कि वह ऐसा तप करे, जिससे शिवजी मिल जाएँ। दूसरे उपाय से यह क्लेश नहीं मिटेगा॥1॥
नारद बचन सगर्भ सहेतू। सुन्दर सब गुन निधि बृषकेतू॥
अस बिचारि तुम्ह तजहु असङ्का। सबहि भाँति सङ्करु अकलङ्का॥2॥
मूल
नारद बचन सगर्भ सहेतू। सुन्दर सब गुन निधि बृषकेतू॥
अस बिचारि तुम्ह तजहु असङ्का। सबहि भाँति सङ्करु अकलङ्का॥2॥
भावार्थ
नारदजी के वचन रहस्य से युक्त और सकारण हैं और शिवजी समस्त सुन्दर गुणों के भण्डार हैं। यह विचारकर तुम (मिथ्या) सन्देह को छोड दो। शिवजी सभी तरह से निष्कलङ्क हैं॥2॥
सुनि पति बचन हरषि मन माहीं। गई तुरत उठि गिरिजा पाहीं॥
उमहि बिलोकि नयन भरे बारी। सहित सनेह गोद बैठारी॥3॥
मूल
सुनि पति बचन हरषि मन माहीं। गई तुरत उठि गिरिजा पाहीं॥
उमहि बिलोकि नयन भरे बारी। सहित सनेह गोद बैठारी॥3॥
भावार्थ
पति के वचन सुन मन में प्रसन्न होकर मैना उठकर तुरन्त पार्वती के पास गईं। पार्वती को देखकर उनकी आँखों में आँसू भर आए। उसे स्नेह के साथ गोद में बैठा लिया॥3॥
बारहिं बार लेति उर लाई। गदगद कण्ठ न कछु कहि जाई॥
जगत मातु सर्बग्य भवानी। मातु सुखद बोलीं मृदु बानी॥4॥
मूल
बारहिं बार लेति उर लाई। गदगद कण्ठ न कछु कहि जाई॥
जगत मातु सर्बग्य भवानी। मातु सुखद बोलीं मृदु बानी॥4॥
भावार्थ
फिर बार-बार उसे हृदय से लगाने लगीं। प्रेम से मैना का गला भर आया, कुछ कहा नहीं जाता। जगज्जननी भवानीजी तो सर्वज्ञ ठहरीं। (माता के मन की दशा को जानकर) वे माता को सुख देने वाली कोमल वाणी से बोलीं-॥4॥