065

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

सदा सुमन फल सहित सब द्रुम नव नाना जाति।
प्रगटीं सुन्दर सैल पर मनि आकर बहु भाँति॥65॥

मूल

सदा सुमन फल सहित सब द्रुम नव नाना जाति।
प्रगटीं सुन्दर सैल पर मनि आकर बहु भाँति॥65॥

भावार्थ

उस सुन्दर पर्वत पर बहुत प्रकार के सब नए-नए वृक्ष सदा पुष्प-फलयुक्त हो गए और वहाँ बहुत तरह की मणियों की खानें प्रकट हो गईं॥65॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

सरिता सब पुनीत जलु बहहीं। खग मृग मधुप सुखी सब रहहीं॥
सहज बयरु सब जीवन्ह त्यागा। गिरि पर सकल करहिं अनुरागा॥1॥

मूल

सरिता सब पुनीत जलु बहहीं। खग मृग मधुप सुखी सब रहहीं॥
सहज बयरु सब जीवन्ह त्यागा। गिरि पर सकल करहिं अनुरागा॥1॥

भावार्थ

सारी नदियों में पवित्र जल बहता है और पक्षी, पशु, भ्रमर सभी सुखी रहते हैं। सब जीवों ने अपना स्वाभाविक बैर छोड दिया और पर्वत पर सभी परस्पर प्रेम करते हैं॥1॥

सोह सैल गिरिजा गृह आएँ। जिमि जनु रामभगति के पाएँ॥
नित नूतन मङ्गल गृह तासू। ब्रह्मादिक गावहिं जसु जासू॥2॥

मूल

सोह सैल गिरिजा गृह आएँ। जिमि जनु रामभगति के पाएँ॥
नित नूतन मङ्गल गृह तासू। ब्रह्मादिक गावहिं जसु जासू॥2॥

भावार्थ

पार्वतीजी के घर आ जाने से पर्वत ऐसा शोभायमान हो रहा है जैसा रामभक्ति को पाकर भक्त शोभायमान होता है। उस (पर्वतराज) के घर नित्य नए-नए मङ्गलोत्सव होते हैं, जिसका ब्रह्मादि यश गाते हैं॥2॥

नारद समाचार सब पाए। कोतुकहीं गिरि गेह सिधाए॥
सैलराज बड आदर कीन्हा। पद पखारि बर आसनु दीन्हा॥3॥

मूल

नारद समाचार सब पाए। कोतुकहीं गिरि गेह सिधाए॥
सैलराज बड आदर कीन्हा। पद पखारि बर आसनु दीन्हा॥3॥

भावार्थ

जब नारदजी ने ये सब समाचार सुने तो वे कौतुक ही से हिमाचल के घर पधारे। पर्वतराज ने उनका बडा आदर किया और चरण धोकर उनको उत्तम आसन दिया॥3॥

नारि सहित मुनि पद सिरु नावा। चरन सलिल सबु भवनु सिञ्चावा॥
निज सौभाग्य बहुत गिरि बरना। सुता बोलि मेली मुनि चरना॥4॥

मूल

नारि सहित मुनि पद सिरु नावा। चरन सलिल सबु भवनु सिञ्चावा॥
निज सौभाग्य बहुत गिरि बरना। सुता बोलि मेली मुनि चरना॥4॥

भावार्थ

फिर अपनी स्त्री सहित मुनि के चरणों में सिर नवाया और उनके चरणोदक को सारे घर में छिडकाया। हिमाचल ने अपने सौभाग्य का बहुत बखान किया और पुत्री को बुलाकर मुनि के चरणों पर डाल दिया॥4॥