064

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

सती मरनु सुनि सम्भु गन लगे करन मख खीस।
जग्य बिधंस बिलोकि भृगु रच्छा कीन्हि मुनीस॥64॥ ॥

भावार्थ

सती का मरण सुनकर शिवजी के गण यज्ञ विध्वंस करने लगे। यज्ञ विध्वंस होते देखकर मुनीश्वर भृगुजी ने उसकी रक्षा की॥64॥

02 चौपाई

समाचार सब सङ्कर पाए। बीरभद्रु करि कोप पठाए॥
जग्य बिधंस जाइ तिन्ह कीन्हा। सकल सुरन्ह बिधिवत फलु दीन्हा॥1॥

भावार्थ

ये सब समाचार शिवजी को मिले, तब उन्होन्ने क्रोध करके वीरभद्र को भेजा। उन्होन्ने वहाँ जाकर यज्ञ विध्वंस कर डाला और सब देवताओं को यथोचित फल (दण्ड) दिया॥1॥

भै जगबिदित दच्छ गति सोई। जसि कछु सम्भु बिमुख कै होई॥
यह इतिहास सकल जग जानी। ताते मैं सञ्छेप बखानी॥2॥

भावार्थ

दक्ष की जगत्प्रसिद्ध वही गति हुई, जो शिवद्रोही की हुआ करती है। यह इतिहास सारा संसार जानता है, इसलिए मैन्ने सङ्क्षेप में वर्णन किया॥2॥सतीं मरत हरि सन बरु मागा। जनम जनम सिव पद अनुरागा॥

तेहि कारन हिमगिरि गृह जाई। जनमीं पारबती तनु पाई॥3॥

भावार्थ

सती ने मरते समय भगवान हरि से यह वर माँगा कि मेरा जन्म-जन्म में शिवजी के चरणों में अनुराग रहे। इसी कारण उन्होन्ने हिमाचल के घर जाकर पार्वती के शरीर से जन्म लिया॥3॥

जब तें उमा सैल गृह जाईं। सकल सिद्धि सम्पति तहँ छाईं॥
जहँ तहँ मुनिन्ह सुआश्रम कीन्हे। उचित बास हिम भूधर दीन्हे॥4॥

भावार्थ

जब से उमाजी हिमाचल के घर जन्मीं, तबसे वहाँ सारी सिद्धियाँ और सम्पत्तियाँ छा गईं। मुनियों ने जहाँ-तहाँ सुन्दर आश्रम बना लिए और हिमाचल ने उनको उचित स्थान दिए॥4॥