01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
दच्छ लिए मुनि बोलि सब करन लगे बड जाग।
नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग॥60॥
मूल
दच्छ लिए मुनि बोलि सब करन लगे बड जाग।
नेवते सादर सकल सुर जे पावत मख भाग॥60॥
भावार्थ
दक्ष ने सब मुनियों को बुला लिया और वे बडा यज्ञ करने लगे। जो देवता यज्ञ का भाग पाते हैं, दक्ष ने उन सबको आदर सहित निमन्त्रित किया॥60॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
किन्नर नाग सिद्ध गन्धर्बा। बधुन्ह समेत चले सुर सर्बा॥
बिष्नु बिरञ्चि महेसु बिहाई। चले सकल सुर जान बनाई॥1॥
मूल
किन्नर नाग सिद्ध गन्धर्बा। बधुन्ह समेत चले सुर सर्बा॥
बिष्नु बिरञ्चि महेसु बिहाई। चले सकल सुर जान बनाई॥1॥
भावार्थ
(दक्ष का निमन्त्रण पाकर) किन्नर, नाग, सिद्ध, गन्धर्व और सब देवता अपनी-अपनी स्त्रियों सहित चले। विष्णु, ब्रह्मा और महादेवजी को छोडकर सभी देवता अपना-अपना विमान सजाकर चले॥1॥
सतीं बिलोके ब्योम बिमाना। जात चले सुन्दर बिधि नाना॥
सुर सुन्दरी करहिं कल गाना। सुनत श्रवन छूटहिं मुनि ध्याना॥2॥
मूल
सतीं बिलोके ब्योम बिमाना। जात चले सुन्दर बिधि नाना॥
सुर सुन्दरी करहिं कल गाना। सुनत श्रवन छूटहिं मुनि ध्याना॥2॥
भावार्थ
सतीजी ने देखा, अनेकों प्रकार के सुन्दर विमान आकाश में चले जा रहे हैं, देव-सुन्दरियाँ मधुर गान कर रही हैं, जिन्हें सुनकर मुनियों का ध्यान छूट जाता है॥2॥
पूछेउ तब सिवँ कहेउ बखानी। पिता जग्य सुनि कछु हरषानी॥
जौं महेसु मोहि आयसु देहीं। कछु िदन जाइ रहौं मिस एहीं॥3॥
मूल
पूछेउ तब सिवँ कहेउ बखानी। पिता जग्य सुनि कछु हरषानी॥
जौं महेसु मोहि आयसु देहीं। कछु िदन जाइ रहौं मिस एहीं॥3॥
भावार्थ
सतीजी ने (विमानों में देवताओं के जाने का कारण) पूछा, तब शिवजी ने सब बातें बतलाईं। पिता के यज्ञ की बात सुनकर सती कुछ प्रसन्न हुईं और सोचने लगीं कि यदि महादेवजी मुझे आज्ञा दें, तो इसी बहाने कुछ दिन पिता के घर जाकर रहूँ॥3॥
पति परित्याग हृदयँ दुखु भारी। कहइ न निज अपराध बिचारी॥
बोली सती मनोहर बानी। भय सङ्कोच प्रेम रस सानी॥4॥
मूल
पति परित्याग हृदयँ दुखु भारी। कहइ न निज अपराध बिचारी॥
बोली सती मनोहर बानी। भय सङ्कोच प्रेम रस सानी॥4॥
भावार्थ
क्योङ्कि उनके हृदय में पति द्वारा त्यागी जाने का बडा भारी दुःख था, पर अपना अपराध समझकर वे कुछ कहती न थीं। आखिर सतीजी भय, सङ्कोच और प्रेमरस में सनी हुई मनोहर वाणी से बोलीं- ॥4॥