053

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

राम बचन मृदु गूढ सुनि उपजा अति सङ्कोचु।
सती सभीत महेस पहिं चलीं हृदयँ बड सोचु॥53॥

मूल

राम बचन मृदु गूढ सुनि उपजा अति सङ्कोचु।
सती सभीत महेस पहिं चलीं हृदयँ बड सोचु॥53॥

भावार्थ

श्री रामचन्द्रजी के कोमल और रहस्य भरे वचन सुनकर सतीजी को बडा सङ्कोच हुआ। वे डरती हुई (चुपचाप) शिवजी के पास चलीं, उनके हृदय में बडी चिन्ता हो गई॥53॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

मैं सङ्कर कर कहा न माना। निज अग्यानु राम पर आना॥
जाइ उतरु अब देहउँ काहा। उर उपजा अति दारुन दाहा॥1॥

मूल

मैं सङ्कर कर कहा न माना। निज अग्यानु राम पर आना॥
जाइ उतरु अब देहउँ काहा। उर उपजा अति दारुन दाहा॥1॥

भावार्थ

कि मैन्ने शङ्करजी का कहना न माना और अपने अज्ञान का श्री रामचन्द्रजी पर आरोप किया। अब जाकर मैं शिवजी को क्या उत्तर दूँगी? (यों सोचते-सोचते) सतीजी के हृदय में अत्यन्त भयानक जलन पैदा हो गई॥1॥

जाना राम सतीं दुखु पावा। निज प्रभाउ कछु प्रगटि जनावा॥
सतीं दीख कौतुकु मग जाता। आगें रामु सहित श्री भ्राता॥2॥

मूल

जाना राम सतीं दुखु पावा। निज प्रभाउ कछु प्रगटि जनावा॥
सतीं दीख कौतुकु मग जाता। आगें रामु सहित श्री भ्राता॥2॥

भावार्थ

श्री रामचन्द्रजी ने जान लिया कि सतीजी को दुःख हुआ, तब उन्होन्ने अपना कुछ प्रभाव प्रकट करके उन्हें दिखलाया। सतीजी ने मार्ग में जाते हुए यह कौतुक देखा कि श्री रामचन्द्रजी सीताजी और लक्ष्मणजी सहित आगे चले जा रहे हैं। (इस अवसर पर सीताजी को इसलिए दिखाया कि सतीजी श्री राम के सच्चिदानन्दमय रूप को देखें, वियोग और दुःख की कल्पना जो उन्हें हुई थी, वह दूर हो जाए तथा वे प्रकृतिस्थ हों।)॥2॥

फिरि चितवा पाछें प्रभु देखा। सहित बन्धु सिय सुन्दर बेषा॥
जहँ चितवहिं तहँ प्रभु आसीना। सेवहिं सिद्ध मुनीस प्रबीना॥3॥

मूल

फिरि चितवा पाछें प्रभु देखा। सहित बन्धु सिय सुन्दर बेषा॥
जहँ चितवहिं तहँ प्रभु आसीना। सेवहिं सिद्ध मुनीस प्रबीना॥3॥

भावार्थ

(तब उन्होन्ने) पीछे की ओर फिरकर देखा, तो वहाँ भी भाई लक्ष्मणजी और सीताजी के साथ श्री रामचन्द्रजी सुन्दर वेष में दिखाई दिए। वे जिधर देखती हैं, उधर ही प्रभु श्री रामचन्द्रजी विराजमान हैं और सुचतुर सिद्ध मुनीश्वर उनकी सेवा कर रहे हैं॥3॥

देखे सिव बिधि बिष्नु अनेका। अमित प्रभाउ एक तें एका॥
बन्दत चरन करत प्रभु सेवा। बिबिध बेष देखे सब देवा॥4॥

मूल

देखे सिव बिधि बिष्नु अनेका। अमित प्रभाउ एक तें एका॥
बन्दत चरन करत प्रभु सेवा। बिबिध बेष देखे सब देवा॥4॥

भावार्थ

सतीजी ने अनेक शिव, ब्रह्मा और विष्णु देखे, जो एक से एक बढकर असीम प्रभाव वाले थे। (उन्होन्ने देखा कि) भाँति-भाँति के वेष धारण किए सभी देवता श्री रामचन्द्रजी की चरणवन्दना और सेवा कर रहे हैं॥4॥