01 दोहा
अति बिचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान।
जे मतिमन्द बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन॥49॥
मूल
अति बिचित्र रघुपति चरित जानहिं परम सुजान।
जे मतिमन्द बिमोह बस हृदयँ धरहिं कछु आन॥49॥
भावार्थ
श्री रघुनाथजी का चरित्र बडा ही विचित्र है, उसको पहुँचे हुए ज्ञानीजन ही जानते हैं। जो मन्दबुद्धि हैं, वे तो विशेष रूप से मोह के वश होकर हृदय में कुछ दूसरी ही बात समझ बैठते हैं॥49॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सम्भु समय तेहि रामहि देखा। उपजा हियँ अति हरषु बिसेषा ॥
भरि लोचन छबिसिन्धु निहारी। कुसमय जानि न कीन्हि चिन्हारी॥1॥
मूल
सम्भु समय तेहि रामहि देखा। उपजा हियँ अति हरषु बिसेषा ॥
भरि लोचन छबिसिन्धु निहारी। कुसमय जानि न कीन्हि चिन्हारी॥1॥
भावार्थ
श्री शिवजी ने उसी अवसर पर श्री रामजी को देखा और उनके हृदय में बहुत भारी आनन्द उत्पन्न हुआ। उन शोभा के समुद्र (श्री रामचन्द्रजी) को शिवजी ने नेत्र भरकर देखा, परन्तु अवसर ठीक न जानकर परिचय नहीं किया॥1॥
जय सच्चिदानन्द जग पावन। अस कहि चलेउ मनोज नसावन॥
चले जात सिव सती समेता। पुनि पुनि पुलकत कृपानिकेता॥2॥
मूल
जय सच्चिदानन्द जग पावन। अस कहि चलेउ मनोज नसावन॥
चले जात सिव सती समेता। पुनि पुनि पुलकत कृपानिकेता॥2॥
भावार्थ
जगत् को पवित्र करने वाले सच्चिदानन्द की जय हो, इस प्रकार कहकर कामदेव का नाश करने वाले श्री शिवजी चल पडे। कृपानिधान शिवजी बार-बार आनन्द से पुलकित होते हुए सतीजी के साथ चले जा रहे थे॥2॥
सतीं सो दसा सम्भु कै देखी। उर उपजा सन्देहु बिसेषी॥
सङ्करु जगतबन्द्य जगदीसा। सुर नर मुनि सब नावत सीसा॥3॥
मूल
सतीं सो दसा सम्भु कै देखी। उर उपजा सन्देहु बिसेषी॥
सङ्करु जगतबन्द्य जगदीसा। सुर नर मुनि सब नावत सीसा॥3॥
भावार्थ
सतीजी ने शङ्करजी की वह दशा देखी तो उनके मन में बडा सन्देह उत्पन्न हो गया। (वे मन ही मन कहने लगीं कि) शङ्करजी की सारा जगत् वन्दना करता है, वे जगत् के ईश्वर हैं, देवता, मनुष्य, मुनि सब उनके प्रति सिर नवाते हैं॥3॥
तिन्ह नृपसुतहि कीन्ह परनामा। कहि सच्चिदानन्द परधामा॥
भए मगन छबि तासु बिलोकी। अजहुँ प्रीति उर रहति न रोकी॥4॥
मूल
तिन्ह नृपसुतहि कीन्ह परनामा। कहि सच्चिदानन्द परधामा॥
भए मगन छबि तासु बिलोकी। अजहुँ प्रीति उर रहति न रोकी॥4॥
भावार्थ
उन्होन्ने एक राजपुत्र को सच्चिदानन्द परधाम कहकर प्रणाम किया और उसकी शोभा देखकर वे इतने प्रेममग्न हो गए कि अब तक उनके हृदय में प्रीति रोकने से भी नहीं रुकती॥4॥