044

01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

ब्रह्म निरूपन धरम बिधि बरनहिं तत्त्व बिभाग।
ककहिं भगति भगवन्त कै सञ्जुत ग्यान बिराग॥44॥

मूल

ब्रह्म निरूपन धरम बिधि बरनहिं तत्त्व बिभाग।
ककहिं भगति भगवन्त कै सञ्जुत ग्यान बिराग॥44॥

भावार्थ

ब्रह्म का निरूपण, धर्म का विधान और तत्त्वों के विभाग का वर्णन करते हैं तथा ज्ञान-वैराग्य से युक्त भगवान्‌ की भक्ति का कथन करते हैं॥44॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं। पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं॥
प्रति सम्बत अति होइ अनन्दा। मकर मज्जि गवनहिं मुनिबृन्दा॥1॥

मूल

एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं। पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं॥
प्रति सम्बत अति होइ अनन्दा। मकर मज्जि गवनहिं मुनिबृन्दा॥1॥

भावार्थ

इसी प्रकार माघ के महीनेभर स्नान करते हैं और फिर सब अपने-अपने आश्रमों को चले जाते हैं। हर साल वहाँ इसी तरह बडा आनन्द होता है। मकर में स्नान करके मुनिगण चले जाते हैं॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

एक बार भरि मकर नहाए। सब मुनीस आश्रमन्ह सिधाए॥
जागबलिक मुनि परम बिबेकी। भरद्वाज राखे पद टेकी॥2॥

मूल

एक बार भरि मकर नहाए। सब मुनीस आश्रमन्ह सिधाए॥
जागबलिक मुनि परम बिबेकी। भरद्वाज राखे पद टेकी॥2॥

भावार्थ

एक बार पूरे मकरभर स्नान करके सब मुनीश्वर अपने-अपने आश्रमों को लौट गए। परम ज्ञानी याज्ञवल्क्य मुनि को चरण पकडकर भरद्वाजजी ने रख लिया॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

सादर चरन सरोज पखारे। अति पुनीत आसन बैठारे॥
करि पूजा मुनि सुजसु बखानी। बोले अति पुनीत मृदु बानी॥3॥

मूल

सादर चरन सरोज पखारे। अति पुनीत आसन बैठारे॥
करि पूजा मुनि सुजसु बखानी। बोले अति पुनीत मृदु बानी॥3॥

भावार्थ

आदरपूर्वक उनके चरण कमल धोए और बडे ही पवित्र आसन पर उन्हें बैठाया। पूजा करके मुनि याज्ञवल्क्यजी के सुयश का वर्णन किया और फिर अत्यन्त पवित्र और कोमल वाणी से बोले-॥3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

नाथ एक संसउ बड मोरें। करगत बेदतत्त्व सबु तोरें॥
कहत सो मोहि लागत भय लाजा। जौं न कहउँ बड होइ अकाजा॥4॥

मूल

नाथ एक संसउ बड मोरें। करगत बेदतत्त्व सबु तोरें॥
कहत सो मोहि लागत भय लाजा। जौं न कहउँ बड होइ अकाजा॥4॥

भावार्थ

हे नाथ! मेरे मन में एक बडा सन्देह है, वेदों का तत्त्व सब आपकी मुट्ठी में है (अर्थात्‌ आप ही वेद का तत्त्व जानने वाले होने के कारण मेरा सन्देह निवारण कर सकते हैं) पर उस सन्देह को कहते मुझे भय और लाज आती है (भय इसलिए कि कहीं आप यह न समझें कि मेरी परीक्षा ले रहा है, लाज इसलिए कि इतनी आयु बीत गई, अब तक ज्ञान न हुआ) और यदि नहीं कहता तो बडी हानि होती है (क्योङ्कि अज्ञानी बना रहता हूँ)॥4॥