01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
बालचरित चहु बन्धु के बनज बिपुल बहुरङ्ग।
नृप रानी परिजन सुकृत मधुकर बारि बिहङ्ग॥40॥
मूल
बालचरित चहु बन्धु के बनज बिपुल बहुरङ्ग।
नृप रानी परिजन सुकृत मधुकर बारि बिहङ्ग॥40॥
भावार्थ
चारों भाइयों के जो बालचरित हैं, वे ही इसमें खिले हुए रङ्ग-बिरङ्गे बहुत से कमल हैं। महाराज श्री दशरथजी तथा उनकी रानियों और कुटुम्बियों के सत्कर्म (पुण्य) ही भ्रमर और जल पक्षी हैं॥40॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सीय स्वयम्बर कथा सुहाई। सरित सुहावनि सो छबि छाई॥
नदी नाव पटु प्रस्न अनेका। केवट कुसल उतर सबिबेका॥1॥
मूल
सीय स्वयम्बर कथा सुहाई। सरित सुहावनि सो छबि छाई॥
नदी नाव पटु प्रस्न अनेका। केवट कुसल उतर सबिबेका॥1॥
भावार्थ
श्री सीताजी के स्वयंवर की जो सुन्दर कथा है, वह इस नदी में सुहावनी छबि छा रही है। अनेकों सुन्दर विचारपूर्ण प्रश्न ही इस नदी की नावें हैं और उनके विवेकयुक्त उत्तर ही चतुर केवट हैं॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुनि अनुकथन परस्पर होई। पथिक समाज सोह सरि सोई॥
घोर धार भृगुनाथ रिसानी। घाट सुबद्ध राम बर बानी॥2॥
मूल
सुनि अनुकथन परस्पर होई। पथिक समाज सोह सरि सोई॥
घोर धार भृगुनाथ रिसानी। घाट सुबद्ध राम बर बानी॥2॥
भावार्थ
इस कथा को सुनकर पीछे जो आपस में चर्चा होती है, वही इस नदी के सहारे-सहारे चलने वाले यात्रियों का समाज शोभा पा रहा है। परशुरामजी का क्रोध इस नदी की भयानक धारा है और श्री रामचन्द्रजी के श्रेष्ठ वचन ही सुन्दर बँधे हुए घाट हैं॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सानुज राम बिबाह उछाहू। सो सुभ उमग सुखद सब काहू॥
कहत सुनत हरषहिं पुलकाहीं। ते सुकृती मन मुदित नहाहीं॥3॥
मूल
सानुज राम बिबाह उछाहू। सो सुभ उमग सुखद सब काहू॥
कहत सुनत हरषहिं पुलकाहीं। ते सुकृती मन मुदित नहाहीं॥3॥
भावार्थ
भाइयों सहित श्री रामचन्द्रजी के विवाह का उत्साह ही इस कथा नदी की कल्याणकारिणी बाढ है, जो सभी को सुख देने वाली है। इसके कहने-सुनने में जो हर्षित और पुलकित होते हैं, वे ही पुण्यात्मा पुरुष हैं, जो प्रसन्न मन से इस नदी में नहाते हैं॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
राम तिलक हित मङ्गल साजा। परब जोग जनु जुरे समाजा।
काई कुमति केकई केरी। परी जासु फल बिपति घनेरी॥4॥
मूल
राम तिलक हित मङ्गल साजा। परब जोग जनु जुरे समाजा।
काई कुमति केकई केरी। परी जासु फल बिपति घनेरी॥4॥
भावार्थ
श्री रामचन्द्रजी के राजतिलक के लिए जो मङ्गल साज सजाया गया, वही मानो पर्व के समय इस नदी पर यात्रियों के समूह इकट्ठे हुए हैं। कैकेयी की कुबुद्धि ही इस नदी में काई है, जिसके फलस्वरूप बडी भारी विपत्ति आ पडी॥4॥