01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
पुलक बाटिका बाग बन सुख सुबिहङ्ग बिहारु।
माली सुमन सनेह जल सीञ्चत लोचन चारु॥37॥
मूल
पुलक बाटिका बाग बन सुख सुबिहङ्ग बिहारु।
माली सुमन सनेह जल सीञ्चत लोचन चारु॥37॥
भावार्थ
कथा में जो रोमाञ्च होता है, वही वाटिका, बाग और वन है और जो सुख होता है, वही सुन्दर पक्षियों का विहार है। निर्मल मन ही माली है, जो प्रेमरूपी जल से सुन्दर नेत्रों द्वारा उनको सीञ्चता है॥37॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
जे गावहिं यह चरित सँभारे। तेइ एहि ताल चतुर रखवारे॥
सदा सुनहिं सादर नर नारी। तेइ सुरबर मानस अधिकारी॥1॥
मूल
जे गावहिं यह चरित सँभारे। तेइ एहि ताल चतुर रखवारे॥
सदा सुनहिं सादर नर नारी। तेइ सुरबर मानस अधिकारी॥1॥
भावार्थ
जो लोग इस चरित्र को सावधानी से गाते हैं, वे ही इस तालाब के चतुर रखवाले हैं और जो स्त्री-पुरुष सदा आदरपूर्वक इसे सुनते हैं, वे ही इस सुन्दर मानस के अधिकारी उत्तम देवता हैं॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अति खल जे बिषई बग कागा। एहि सर निकट न जाहिं अभागा॥
सम्बुक भेक सेवार समाना। इहाँ न बिषय कथा रस नाना॥2॥
मूल
अति खल जे बिषई बग कागा। एहि सर निकट न जाहिं अभागा॥
सम्बुक भेक सेवार समाना। इहाँ न बिषय कथा रस नाना॥2॥
भावार्थ
जो अति दुष्ट और विषयी हैं, वे अभागे बगुले और कौए हैं, जो इस सरोवर के समीप नहीं जाते, क्योङ्कि यहाँ (इस मानस सरोवर में) घोङ्घे, मेण्ढक और सेवार के समान विषय रस की नाना कथाएँ नहीं हैं॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
तेहि कारन आवत हियँ हारे। कामी काक बलाक बिचारे॥
आवत ऐहिं सर अति कठिनाई। राम कृपा बिनु आइ न जाई॥3॥
मूल
तेहि कारन आवत हियँ हारे। कामी काक बलाक बिचारे॥
आवत ऐहिं सर अति कठिनाई। राम कृपा बिनु आइ न जाई॥3॥
भावार्थ
इसी कारण बेचारे कौवे और बगुले रूपी विषयी लोग यहाँ आते हुए हृदय में हार मान जाते हैं, क्योङ्कि इस सरोवर तक आने में कठिनाइयाँ बहुत हैं। श्री रामजी की कृपा बिना यहाँ नहीं आया जाता॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
कठिन कुसङ्ग कुपन्थ कराला। तिन्ह के बचन बाघ हरि ब्याला॥
गृह कारज नाना जञ्जाला। ते अति दुर्गम सैल बिसाला॥4॥
मूल
कठिन कुसङ्ग कुपन्थ कराला। तिन्ह के बचन बाघ हरि ब्याला॥
गृह कारज नाना जञ्जाला। ते अति दुर्गम सैल बिसाला॥4॥
भावार्थ
घोर कुसङ्ग ही भयानक बुरा रास्ता है, उन कुसङ्गियों के वचन ही बाघ, सिंह और साँप हैं। घर के कामकाज और गृहस्थी के भाँति-भाँति के जञ्जाल ही अत्यन्त दुर्गम बडे-बडे पहाड हैं॥4॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
बन बहु बिषम मोह मद माना। नदीं कुतर्क भयङ्कर नाना॥5॥
मूल
बन बहु बिषम मोह मद माना। नदीं कुतर्क भयङ्कर नाना॥5॥
भावार्थ
मोह, मद और मान ही बहुत से बीहड वन हैं और नाना प्रकार के कुतर्क ही भयानक नदियाँ हैं॥5॥