01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुठि सुन्दर सम्बाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि।
तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि॥36॥
मूल
सुठि सुन्दर सम्बाद बर बिरचे बुद्धि बिचारि।
तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि॥36॥
भावार्थ
इस कथा में बुद्धि से विचारकर जो चार अत्यन्त सुन्दर और उत्तम संवाद (भुशुण्डि-गरुड, शिव-पार्वती, याज्ञवल्क्य-भरद्वाज और तुलसीदास और सन्त) रचे हैं, वही इस पवित्र और सुन्दर सरोवर के चार मनोहर घाट हैं॥36॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
सप्त प्रबन्ध सुभग सोपाना। ग्यान नयन निरखत मन माना॥
रघुपति महिमा अगुन अबाधा। बरनब सोइ बर बारि अगाधा॥1॥
मूल
सप्त प्रबन्ध सुभग सोपाना। ग्यान नयन निरखत मन माना॥
रघुपति महिमा अगुन अबाधा। बरनब सोइ बर बारि अगाधा॥1॥
भावार्थ
सात काण्ड ही इस मानस सरोवर की सुन्दर सात सीढियाँ हैं, जिनको ज्ञान रूपी नेत्रों से देखते ही मन प्रसन्न हो जाता है। श्री रघुनाथजी की निर्गुण (प्राकृतिक गुणों से अतीत) और निर्बाध (एकरस) महिमा का जो वर्णन किया जाएगा, वही इस सुन्दर जल की अथाह गहराई है॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
राम सीय जस सलिल सुधासम। उपमा बीचि बिलास मनोरम॥
पुरइनि सघन चारु चौपाई। जुगुति मञ्जु मनि सीप सुहाई॥2॥
मूल
राम सीय जस सलिल सुधासम। उपमा बीचि बिलास मनोरम॥
पुरइनि सघन चारु चौपाई। जुगुति मञ्जु मनि सीप सुहाई॥2॥
भावार्थ
श्री रामचन्द्रजी और सीताजी का यश अमृत के समान जल है। इसमें जो उपमाएँ दी गई हैं, वही तरङ्गों का मनोहर विलास है। सुन्दर चौपाइयाँ ही इसमें घनी फैली हुई पुरइन (कमलिनी) हैं और कविता की युक्तियाँ सुन्दर मणि (मोती) उत्पन्न करने वाली सुहावनी सीपियाँ हैं॥2॥
03 छन्द
विश्वास-प्रस्तुतिः
सोरठा सुन्दर दोहा। सोइ बहुरङ्ग कमल कुल सोहा॥
अरथ अनूप सुभाव सुभासा। सोइ पराग मकरन्द सुबासा॥3॥
मूल
सोरठा सुन्दर दोहा। सोइ बहुरङ्ग कमल कुल सोहा॥
अरथ अनूप सुभाव सुभासा। सोइ पराग मकरन्द सुबासा॥3॥
भावार्थ
जो सुन्दर छन्द, सोरठे और दोहे हैं, वही इसमें बहुरङ्गे कमलों के समूह सुशोभित हैं। अनुपम अर्थ, ऊँचे भाव और सुन्दर भाषा ही पराग (पुष्परज), मकरन्द (पुष्परस) और सुगन्ध हैं॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुकृत पुञ्ज मञ्जुल अलि माला। ग्यान बिराग बिचार मराला॥
धुनि अवरेब कबित गुन जाती। मीन मनोहर ते बहुभाँती॥4॥
मूल
सुकृत पुञ्ज मञ्जुल अलि माला। ग्यान बिराग बिचार मराला॥
धुनि अवरेब कबित गुन जाती। मीन मनोहर ते बहुभाँती॥4॥
भावार्थ
सत्कर्मों (पुण्यों) के पुञ्ज भौंरों की सुन्दर पङ्क्तियाँ हैं, ज्ञान, वैराग्य और विचार हंस हैं। कविता की ध्वनि वक्रोक्ति, गुण और जाति ही अनेकों प्रकार की मनोहर मछलियाँ हैं॥4॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अरथ धरम कामादिक चारी। कहब ग्यान बिग्यान बिचारी॥
नव रस जप तप जोग बिरागा। ते सब जलचर चारु तडागा॥5॥
मूल
अरथ धरम कामादिक चारी। कहब ग्यान बिग्यान बिचारी॥
नव रस जप तप जोग बिरागा। ते सब जलचर चारु तडागा॥5॥
भावार्थ
अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष- ये चारों, ज्ञान-विज्ञान का विचार के कहना, काव्य के नौ रस, जप, तप, योग और वैराग्य के प्रसङ्ग- ये सब इस सरोवर के सुन्दर जलचर जीव हैं॥5॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सुकृती साधु नाम गुन गाना। ते बिचित्र जलबिहग समाना॥
सन्तसभा चहुँ दिसि अवँराई। श्रद्धा रितु बसन्त सम गाई॥6॥
मूल
सुकृती साधु नाम गुन गाना। ते बिचित्र जलबिहग समाना॥
सन्तसभा चहुँ दिसि अवँराई। श्रद्धा रितु बसन्त सम गाई॥6॥
भावार्थ
सुकृती (पुण्यात्मा) जनों के, साधुओं के और श्री रामनाम के गुणों का गान ही विचित्र जल पक्षियों के समान है। सन्तों की सभा ही इस सरोवर के चारों ओर की अमराई (आम की बगीचियाँ) हैं और श्रद्धा वसन्त ऋतु के समान कही गई है॥6॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भगति निरूपन बिबिध बिधाना। छमा दया दम लता बिताना॥
सम जम नियम फूल फल ग्याना। हरि पद रति रस बेद बखाना॥7॥
मूल
भगति निरूपन बिबिध बिधाना। छमा दया दम लता बिताना॥
सम जम नियम फूल फल ग्याना। हरि पद रति रस बेद बखाना॥7॥
भावार्थ
नाना प्रकार से भक्ति का निरूपण और क्षमा, दया तथा दम (इन्द्रिय निग्रह) लताओं के मण्डप हैं। मन का निग्रह, यम (अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह), नियम (शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान) ही उनके फूल हैं, ज्ञान फल है और श्री हरि के चरणों में प्रेम ही इस ज्ञान रूपी फल का रस है। ऐसा वेदों ने कहा है॥7॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
औरउ कथा अनेक प्रसङ्गा। तेइ सुक पिक बहुबरन बिहङ्गा॥8॥
मूल
औरउ कथा अनेक प्रसङ्गा। तेइ सुक पिक बहुबरन बिहङ्गा॥8॥
भावार्थ
इस (रामचरित मानस) में और भी जो अनेक प्रसङ्गों की कथाएँ हैं, वे ही इसमें तोते, कोयल आदि रङ्ग-बिरङ्गे पक्षी हैं॥8॥