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01 दोहा

विश्वास-प्रस्तुतिः

कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट दम्भ पाषण्ड।
दहन राम गुन ग्राम जिमि इन्धन अनल प्रचण्ड॥1॥

मूल

कुपथ कुतरक कुचालि कलि कपट दम्भ पाषण्ड।
दहन राम गुन ग्राम जिमि इन्धन अनल प्रचण्ड॥1॥

भावार्थ

श्री रामजी के गुणों के समूह कुमार्ग, कुतर्क, कुचाल और कलियुग के कपट, दम्भ और पाखण्ड को जलाने के लिए वैसे ही हैं, जैसे ईन्धन के लिए प्रचण्ड अग्नि॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

रामचरित राकेस कर सरिस सुखद सब काहु।
सज्जन कुमुद चकोर चित हित बिसेषि बड लाहु॥2॥

मूल

रामचरित राकेस कर सरिस सुखद सब काहु।
सज्जन कुमुद चकोर चित हित बिसेषि बड लाहु॥2॥

भावार्थ

रामचरित्र पूर्णिमा के चन्द्रमा की किरणों के समान सभी को सुख देने वाले हैं, परन्तु सज्जन रूपी कुमुदिनी और चकोर के चित्त के लिए तो विशेष हितकारी और महान लाभदायक हैं॥2॥

02 चौपाई

विश्वास-प्रस्तुतिः

कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी। जेहि बिधि सङ्कर कहा बखानी॥
सो सब हेतु कहब मैं गाई। कथा प्रबन्ध बिचित्र बनाई॥1॥

मूल

कीन्हि प्रस्न जेहि भाँति भवानी। जेहि बिधि सङ्कर कहा बखानी॥
सो सब हेतु कहब मैं गाई। कथा प्रबन्ध बिचित्र बनाई॥1॥

भावार्थ

जिस प्रकार श्री पार्वतीजी ने श्री शिवजी से प्रश्न किया और जिस प्रकार से श्री शिवजी ने विस्तार से उसका उत्तर कहा, वह सब कारण मैं विचित्र कथा की रचना करके गाकर कहूँगा॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

जेहिं यह कथा सुनी नहिं होई। जनि आचरजु करै सुनि सोई॥
कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी॥2॥
रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥
नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥3॥

मूल

जेहिं यह कथा सुनी नहिं होई। जनि आचरजु करै सुनि सोई॥
कथा अलौकिक सुनहिं जे ग्यानी। नहिं आचरजु करहिं अस जानी॥2॥
रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥
नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥3॥

भावार्थ

जिसने यह कथा पहले न सुनी हो, वह इसे सुनकर आश्चर्य न करे। जो ज्ञानी इस विचित्र कथा को सुनते हैं, वे यह जानकर आश्चर्य नहीं करते कि संसार में रामकथा की कोई सीमा नहीं है (रामकथा अनन्त है)। उनके मन में ऐसा विश्वास रहता है। नाना प्रकार से श्री रामचन्द्रजी के अवतार हुए हैं और सौ करोड तथा अपार रामायण हैं॥2-3॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

कलपभेद हरिचरित सुहाए। भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए॥
करिअ न संसय अस उर आनी। सुनिअ कथा सादर रति मानी॥4॥

मूल

कलपभेद हरिचरित सुहाए। भाँति अनेक मुनीसन्ह गाए॥
करिअ न संसय अस उर आनी। सुनिअ कथा सादर रति मानी॥4॥

भावार्थ

कल्पभेद के अनुसार श्री हरि के सुन्दर चरित्रों को मुनीश्वरों ने अनेकों प्रकार से गया है। हृदय में ऐसा विचार कर सन्देह न कीजिए और आदर सहित प्रेम से इस कथा को सुनिए॥4॥