01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
रामकथा मन्दाकिनी चित्रकूट चित चारु।
तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥31॥
मूल
रामकथा मन्दाकिनी चित्रकूट चित चारु।
तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु॥31॥
भावार्थ
तुलसीदासजी कहते हैं कि रामकथा मन्दाकिनी नदी है, सुन्दर (निर्मल) चित्त चित्रकूट है और सुन्दर स्नेह ही वन है, जिसमें श्री सीतारामजी विहार करते हैं॥31॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
रामचरित चिन्तामति चारू। सन्त सुमति तिय सुभग सिङ्गारू॥
जग मङ्गल गुनग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥1॥
मूल
रामचरित चिन्तामति चारू। सन्त सुमति तिय सुभग सिङ्गारू॥
जग मङ्गल गुनग्राम राम के। दानि मुकुति धन धरम धाम के॥1॥
भावार्थ
श्री रामचन्द्रजी का चरित्र सुन्दर चिन्तामणि है और सन्तों की सुबुद्धि रूपी स्त्री का सुन्दर श्रङ्गार है। श्री रामचन्द्रजी के गुण-समूह जगत् का कल्याण करने वाले और मुक्ति, धन, धर्म और परमधाम के देने वाले हैं॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सदगुर ग्यान बिराग जोग के। बिबुध बैद भव भीम रोग के॥
जननि जनक सिय राम प्रेम के। बीज सकल ब्रत धरम नेम के॥2॥
मूल
सदगुर ग्यान बिराग जोग के। बिबुध बैद भव भीम रोग के॥
जननि जनक सिय राम प्रेम के। बीज सकल ब्रत धरम नेम के॥2॥
भावार्थ
ज्ञान, वैराग्य और योग के लिए सद्गुरु हैं और संसार रूपी भयङ्कर रोग का नाश करने के लिए देवताओं के वैद्य (अश्विनीकुमार) के समान हैं। ये श्री सीतारामजी के प्रेम के उत्पन्न करने के लिए माता-पिता हैं और सम्पूर्ण व्रत, धर्म और नियमों के बीज हैं॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
समन पाप सन्ताप सोक के। प्रिय पालक परलोक लोक के॥
सचिव सुभट भूपति बिचार के। कुम्भज लोभ उदधि अपार के॥3॥
मूल
समन पाप सन्ताप सोक के। प्रिय पालक परलोक लोक के॥
सचिव सुभट भूपति बिचार के। कुम्भज लोभ उदधि अपार के॥3॥
भावार्थ
पाप, सन्ताप और शोक का नाश करने वाले तथा इस लोक और परलोक के प्रिय पालन करने वाले हैं। विचार (ज्ञान) रूपी राजा के शूरवीर मन्त्री और लोभ रूपी अपार समुद्र के सोखने के लिए अगस्त्य मुनि हैं॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
काम कोह कलिमल करिगन के। केहरि सावक जन मन बन के॥
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद घन दारिद दवारि के॥4॥
मूल
काम कोह कलिमल करिगन के। केहरि सावक जन मन बन के॥
अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के। कामद घन दारिद दवारि के॥4॥
भावार्थ
भक्तों के मन रूपी वन में बसने वाले काम, क्रोध और कलियुग के पाप रूपी हाथियों को मारने के लिए सिंह के बच्चे हैं। शिवजी के पूज्य और प्रियतम अतिथि हैं और दरिद्रता रूपी दावानल के बुझाने के लिए कामना पूर्ण करने वाले मेघ हैं॥4॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
मन्त्र महामनि बिषय ब्याल के। मेटत कठिन कुअङ्क भाल के॥
हरन मोह तम दिनकर कर से। सेवक सालि पाल जलधर से॥5॥
मूल
मन्त्र महामनि बिषय ब्याल के। मेटत कठिन कुअङ्क भाल के॥
हरन मोह तम दिनकर कर से। सेवक सालि पाल जलधर से॥5॥
भावार्थ
विषय रूपी साँप का जहर उतारने के लिए मन्त्र और महामणि हैं। ये ललाट पर लिखे हुए कठिनता से मिटने वाले बुरे लेखों (मन्द प्रारब्ध) को मिटा देने वाले हैं। अज्ञान रूपी अन्धकार को हरण करने के लिए सूर्य किरणों के समान और सेवक रूपी धान के पालन करने में मेघ के समान हैं॥5॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
अभिमत दानि देवतरु बर से। सेवत सुलभ सुखद हरि हर से॥
सुकबि सरद नभ मन उडगन से। रामभगत जन जीवन धन से॥6॥
मूल
अभिमत दानि देवतरु बर से। सेवत सुलभ सुखद हरि हर से॥
सुकबि सरद नभ मन उडगन से। रामभगत जन जीवन धन से॥6॥
भावार्थ
मनोवाञ्छित वस्तु देने में श्रेष्ठ कल्पवृक्ष के समान हैं और सेवा करने में हरि-हर के समान सुलभ और सुख देने वाले हैं। सुकवि रूपी शरद् ऋतु के मन रूपी आकाश को सुशोभित करने के लिए तारागण के समान और श्री रामजी के भक्तों के तो जीवन धन ही हैं॥6॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सकल सुकृत फल भूरि भोग से। जग हित निरुपधि साधु लोग से॥
सेवक मन मानस मराल से। पावन गङ्ग तरङ्ग माल से॥7॥
मूल
सकल सुकृत फल भूरि भोग से। जग हित निरुपधि साधु लोग से॥
सेवक मन मानस मराल से। पावन गङ्ग तरङ्ग माल से॥7॥
भावार्थ
सम्पूर्ण पुण्यों के फल महान भोगों के समान हैं। जगत का छलरहित (यथार्थ) हित करने में साधु-सन्तों के समान हैं। सेवकों के मन रूपी मानसरोवर के लिए हंस के समान और पवित्र करने में गङ्गाजी की तरङ्गमालाओं के समान हैं॥7॥