01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
निरगुन तें एहि भाँति बड नाम प्रभाउ अपार।
कहउँ नामु बड राम तें निज बिचार अनुसार॥23॥
मूल
निरगुन तें एहि भाँति बड नाम प्रभाउ अपार।
कहउँ नामु बड राम तें निज बिचार अनुसार॥23॥
भावार्थ
इस प्रकार निर्गुण से नाम का प्रभाव अत्यन्त बडा है। अब अपने विचार के अनुसार कहता हूँ, कि नाम (सगुण) राम से भी बडा है॥23॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
राम भगत हित नर तनु धारी। सहि सङ्कट किए साधु सुखारी॥
नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मङ्गल बासा॥1॥
मूल
राम भगत हित नर तनु धारी। सहि सङ्कट किए साधु सुखारी॥
नामु सप्रेम जपत अनयासा। भगत होहिं मुद मङ्गल बासा॥1॥
भावार्थ
श्री रामचन्द्रजी ने भक्तों के हित के लिए मनुष्य शरीर धारण करके स्वयं कष्ट सहकर साधुओं को सुखी किया, परन्तु भक्तगण प्रेम के साथ नाम का जप करते हुए सहज ही में आनन्द और कल्याण के घर हो जाते हैं॥1॥।
विश्वास-प्रस्तुतिः
राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥
रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्हि बिबाकी॥2॥
सहित दोष दुख दास दुरासा। दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा॥
भञ्जेउ राम आपु भव चापू। भव भय भञ्जन नाम प्रतापू॥3॥
मूल
राम एक तापस तिय तारी। नाम कोटि खल कुमति सुधारी॥
रिषि हित राम सुकेतुसुता की। सहित सेन सुत कीन्हि बिबाकी॥2॥
सहित दोष दुख दास दुरासा। दलइ नामु जिमि रबि निसि नासा॥
भञ्जेउ राम आपु भव चापू। भव भय भञ्जन नाम प्रतापू॥3॥
भावार्थ
श्री रामजी ने एक तपस्वी की स्त्री (अहिल्या) को ही तारा, परन्तु नाम ने करोडों दुष्टों की बिगडी बुद्धि को सुधार दिया। श्री रामजी ने ऋषि विश्वामिश्र के हित के लिए एक सुकेतु यक्ष की कन्या ताडका की सेना और पुत्र (सुबाहु) सहित समाप्ति की, परन्तु नाम अपने भक्तों के दोष, दुःख और दुराशाओं का इस तरह नाश कर देता है जैसे सूर्य रात्रि का। श्री रामजी ने तो स्वयं शिवजी के धनुष को तोडा, परन्तु नाम का प्रताप ही संसार के सब भयों का नाश करने वाला है॥2-3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
दण्डक बन प्रभु कीन्ह सुहावन। जन मन अमित नाम किए पावन॥
निसिचर निकर दले रघुनन्दन। नामु सकल कलि कलुष निकन्दन॥4॥
मूल
दण्डक बन प्रभु कीन्ह सुहावन। जन मन अमित नाम किए पावन॥
निसिचर निकर दले रघुनन्दन। नामु सकल कलि कलुष निकन्दन॥4॥
भावार्थ
प्रभु श्री रामजी ने (भयानक) दण्डक वन को सुहावना बनाया, परन्तु नाम ने असङ्ख्य मनुष्यों के मनों को पवित्र कर दिया। श्री रघुनाथजी ने राक्षसों के समूह को मारा, परन्तु नाम तो कलियुग के सारे पापों की जड उखाडने वाला है॥4॥