01 दोहा
विश्वास-प्रस्तुतिः
भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक।
सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें बिमल बिबेक॥9॥
मूल
भनिति मोरि सब गुन रहित बिस्व बिदित गुन एक।
सो बिचारि सुनिहहिं सुमति जिन्ह कें बिमल बिबेक॥9॥
भावार्थ
मेरी रचना सब गुणों से रहित है, इसमें बस, जगत्प्रसिद्ध एक गुण है। उसे विचारकर अच्छी बुद्धिवाले पुरुष, जिनके निर्मल ज्ञान है, इसको सुनेङ्गे॥9॥
02 चौपाई
विश्वास-प्रस्तुतिः
एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
मङ्गल भवन अमङ्गल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥1॥
मूल
एहि महँ रघुपति नाम उदारा। अति पावन पुरान श्रुति सारा॥
मङ्गल भवन अमङ्गल हारी। उमा सहित जेहि जपत पुरारी॥1॥
भावार्थ
इसमें श्री रघुनाथजी का उदार नाम है, जो अत्यन्त पवित्र है, वेद-पुराणों का सार है, कल्याण का भवन है और अमङ्गलों को हरने वाला है, जिसे पार्वतीजी सहित भगवान शिवजी सदा जपा करते हैं॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ। राम नाम बिनु सोह न सोउ॥
बिधुबदनी सब भाँति सँवारी। सोह न बसन बिना बर नारी॥2॥
मूल
भनिति बिचित्र सुकबि कृत जोऊ। राम नाम बिनु सोह न सोउ॥
बिधुबदनी सब भाँति सँवारी। सोह न बसन बिना बर नारी॥2॥
भावार्थ
जो अच्छे कवि के द्वारा रची हुई बडी अनूठी कविता है, वह भी राम नाम के बिना शोभा नहीं पाती। जैसे चन्द्रमा के समान मुख वाली सुन्दर स्त्री सब प्रकार से सुसज्जित होने पर भी वस्त्र के बिना शोभा नहीं देती॥2॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
सब गुन रहित कुकबि कृत बानी। राम नाम जस अङ्कित जानी॥
सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही। मधुकर सरिस सन्त गुनग्राही॥3॥
मूल
सब गुन रहित कुकबि कृत बानी। राम नाम जस अङ्कित जानी॥
सादर कहहिं सुनहिं बुध ताही। मधुकर सरिस सन्त गुनग्राही॥3॥
भावार्थ
इसके विपरीत, कुकवि की रची हुई सब गुणों से रहित कविता को भी, राम के नाम एवं यश से अङ्कित जानकर, बुद्धिमान लोग आदरपूर्वक कहते और सुनते हैं, क्योङ्कि सन्तजन भौंरे की भाँति गुण ही को ग्रहण करने वाले होते हैं॥3॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
जदपि कबित रस एकउ नाहीं। राम प्रताप प्रगट एहि माहीं॥
सोइ भरोस मोरें मन आवा। केहिं न सुसङ्ग बडप्पनु पावा॥4॥
मूल
जदपि कबित रस एकउ नाहीं। राम प्रताप प्रगट एहि माहीं॥
सोइ भरोस मोरें मन आवा। केहिं न सुसङ्ग बडप्पनु पावा॥4॥
भावार्थ
यद्यपि मेरी इस रचना में कविता का एक भी रस नहीं है, तथापि इसमें श्री रामजी का प्रताप प्रकट है। मेरे मन में यही एक भरोसा है। भले सङ्ग से भला, किसने बडप्पन नहीं पाया?॥4॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
धूमउ तजइ सहज करुआई। अगरु प्रसङ्ग सुगन्ध बसाई॥
भनिति भदेस बस्तु भलि बरनी। राम कथा जग मङ्गल करनी॥5॥
मूल
धूमउ तजइ सहज करुआई। अगरु प्रसङ्ग सुगन्ध बसाई॥
भनिति भदेस बस्तु भलि बरनी। राम कथा जग मङ्गल करनी॥5॥
भावार्थ
धुआँ भी अगर के सङ्ग से सुगन्धित होकर अपने स्वाभाविक कडुवेपन को छोड देता है। मेरी कविता अवश्य भद्दी है, परन्तु इसमें जगत का कल्याण करने वाली रामकथा रूपी उत्तम वस्तु का वर्णन किया गया है। (इससे यह भी अच्छी ही समझी जाएगी।)॥5॥
03 छन्द
विश्वास-प्रस्तुतिः
मङ्गल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की।
गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥1॥
मूल
मङ्गल करनि कलिमल हरनि तुलसी कथा रघुनाथ की।
गति कूर कबिता सरित की ज्यों सरित पावन पाथ की॥1॥
भावार्थ
तुलसीदासजी कहते हैं कि श्री रघुनाथजी की कथा कल्याण करने वाली और कलियुग के पापों को हरने वाली है। मेरी इस भद्दी कविता रूपी नदी की चाल पवित्र जल वाली नदी (गङ्गाजी) की चाल की भाँति टेढी है।॥1॥
विश्वास-प्रस्तुतिः
प्रभु सुजस सङ्गति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी
भव अङ्ग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी॥2॥
मूल
प्रभु सुजस सङ्गति भनिति भलि होइहि सुजन मन भावनी
भव अङ्ग भूति मसान की सुमिरत सुहावनि पावनी॥2॥
भावार्थ
प्रभु श्री रघुनाथजी के सुन्दर यश के सङ्ग से यह कविता सुन्दर तथा सज्जनों के मन को भाने वाली हो जाएगी। श्मशान की अपवित्र राख भी श्री महादेवजी के अङ्ग के सङ्ग से सुहावनी लगती है और स्मरण करते ही पवित्र करने वाली होती है।॥2॥