005 सौजन्यम्

01 दोहा सौजन्यम्

विश्वास-प्रस्तुतिः

भलो +++(जन)+++ भलाइ हि +++(को)+++ पै+++(=प्रति)+++ लहइ+++(=लभते)+++,
+++(किन्तु)+++ लहइ निचाइ हि नीचु।
सुधा सराहिअ+++(=श्लाघ्यते)+++ अमरताँ+++(=अमरतया)+++
गरल सराहिअ मीचु+++(=मृत्यु [से])+++=॥5॥

मूल

भलो भलाइहि पै लहइ लहइ निचाइहि नीचु।
सुधा सराहिअ अमरताँ गरल सराहिअ मीचु॥5॥

भावार्थ

भला भलाई ही ग्रहण करता है और नीच नीचता को ही ग्रहण किए रहता है। अमृत की सराहना अमर करने में होती है और विष की मारने में॥5॥

02 चौपाई सद्-असद्-विवेकस्रोतः

विश्वास-प्रस्तुतिः

खल-अघ-अगुन, साधु-गुन गाहा+++(था)+++।
उभय अपार उदधि अवगाहा॥
तेहि तें+++(=से)+++ कछु+++(=कुछ)+++ गुन दोष बखाने+++(=व्याख्यातानि)+++।
+++(यतः-)+++ सङ्ग्रह त्याग न बिनु पहिचाने॥1॥+++(४)+++

मूल

खल अघ अगुन साधु गुन गाहा। उभय अपार उदधि अवगाहा॥
तेहि तें कछु गुन दोष बखाने। सङ्ग्रह त्याग न बिनु पहिचाने॥1॥

भावार्थ

दुष्टों के पापों और अवगुणों की और साधुओं के गुणों की कथाएँ- दोनों ही अपार और अथाह समुद्र हैं। इसी से कुछ गुण और दोषों का वर्णन किया गया है, क्योङ्कि बिना पहचाने उनका ग्रहण या त्याग नहीं हो सकता॥1॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

भलेउ पोच सब बिधि उपजाए। गनि गुन दोष बेद बिलगाए॥
कहहिं बेद इतिहास पुराना। बिधि प्रपञ्चु गुन अवगुन साना॥2॥

मूल

भलेउ पोच सब बिधि उपजाए। गनि गुन दोष बेद बिलगाए॥
कहहिं बेद इतिहास पुराना। बिधि प्रपञ्चु गुन अवगुन साना॥2॥

भावार्थ

भले-बुरे सभी ब्रह्मा के पैदा किए हुए हैं, पर गुण और दोषों को विचार कर वेदों ने उनको अलग-अलग कर दिया है। वेद, इतिहास और पुराण कहते हैं कि ब्रह्मा की यह सृष्टि गुण-अवगुणों से सनी हुई है॥2॥

विश्वास-प्रस्तुतिः

दुख सुख पाप पुन्य दिन राती
साधु असाधु सुजाति कुजाती॥
दानव देव ऊँच अरु नीचू
अमिअ+++(=अमृत)+++ सुजीवनु माहुरु+++(=मधुर[विष])+++ मीचू+++(=मृत्यु)+++॥3॥
माया ब्रह्म जीव जगदीसा
लच्छि अलच्छि रङ्क+++(=दरिद्र)+++ अवनीसा+++(=अवनीश)+++॥
कासी मग+++(ध)+++ सुरसरि+++(त्)+++ क्र+++(कर्)+++मनासा
मरु मारव+++(=मालव)+++ महिदेव+++(=भूसुर)+++ गवासा+++(=गवाश म्लेच्छ)+++॥4॥
सरग नरक अनुराग बिरागा -
+++(तिन्ह के)+++ निगमागम +++(शास्त्र)+++ गुन दोष बिभागा॥5॥

मूल

दुख सुख पाप पुन्य दिन राती। साधु असाधु सुजाति कुजाती॥
दानव देव ऊँच अरु नीचू। अमिअ सुजीवनु माहुरु मीचू॥3॥
माया ब्रह्म जीव जगदीसा। लच्छि अलच्छि रङ्क अवनीसा॥
कासी मग सुरसरि क्रमनासा। मरु मारव महिदेव गवासा॥4॥
सरग नरक अनुराग बिरागा। निगमागम गुन दोष बिभागा॥5॥

भावार्थ

दुःख-सुख, पाप-पुण्य, दिन-रात, साधु-असाधु, सुजाति-कुजाति, दानव-देवता, ऊँच-नीच, अमृत-विष, सुजीवन (सुन्दर जीवन)-मृत्यु, माया-ब्रह्म, जीव-ईश्वर, सम्पत्ति-दरिद्रता, रङ्क-राजा, काशी-मगध, गङ्गा-कर्मनाशा, मारवाड-मालवा, ब्राह्मण-कसाई, स्वर्ग-नरक, अनुराग-वैराग्य (ये सभी पदार्थ ब्रह्मा की सृष्टि में हैं।) वेद-शास्त्रों ने उनके गुण-दोषों का विभाग कर दिया है॥3-5॥